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________________ प २१ : श्रीनमिजिन-स्तुति-- वीतराग परमात्मा के चरण-उपासक तर्ज- धन धन सम्प्रति राजा साचो, राग-आशावरी । षड्दर्शन जिन- अंग भरणीजे, न्यास षड्ग जो साधे रे। नर्मिजिनवरना चरण-उपासक, षड्दर्शन आराधे रे ॥षड़० १॥ अर्थ साख्य, योग, बौद्ध,मीमासक, लोकायतिक और जैन आदि ६ दर्शन जिन (वीतराग परमात्मा) के ६ अग हैं, बशर्ते कि छही अगो की स्थापना ठीक ढग से की जाय । जो नमिजिनवर (वीतरागप्रभु) के परम चरण-उपासक हैं, वे छही दर्शनो को ययार्य आराधना करते हैं । उन्हे सत्कारपूर्वक अपनाते हैं । भाष्य वीतराग-उपासक का दर्शन : उदारदृष्टिपूर्ण पूर्वस्तुति मे श्री आनन्दघनजी ने प्रभु से आत्मा के स्वरूप के विषय मे पछा था, उसमे आत्मा के सम्बन्ध मे विविध दार्शनिको के मत बता कर एकान्त मतवादियो के मत में क्या-क्या दोष हैं ? यह बताया था। उसी सिलसिले में एक प्रश्न गमित है फि तो फिर वीतराग-परमात्मा के उपासक का दर्शन कैसा होगा? आत्मा-परमात्मा, जीवन और जगत् के सम्बन्ध मे विचार करने वाले विविध दर्शनो के विषय मे उसका क्या दृष्टिकोण होगा? वीतराग परमात्मा के अनेकान्तवाद का उपासक अपनी दृष्टि से उन छहो दर्शनो मे से किसको कहां स्थान देगा? ये और इन्ही कुछ उठने वाले प्रश्नो के उत्तर मे श्रीआनन्दघनजी ने इक्कीसवें तीर्थकर श्रीनमिजिनवर की स्तुति के माध्यम से परमात्मा के चरण-उपासक के उदार विचारदर्शन को स्पष्ट किया है। साथ ही यहां यह भी ध्वनित कर दिया है कि वीतराग-परमात्मा का सच्चा चरण-उपासक कौन
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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