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________________ ४४८ अध्यात्म-दर्शन सारांश इस स्तुति मे योगीश्री ने सर्वप्रथम प्रभु के सामने जात्मतत्त्व की जिज्ञासा प्रस्तुत की है, प्रभु से इस जिज्ञासा के समाधान का कारण भी उन्होंने बताया है। फिर वेदान्त, साख्य, अद्वैतनित्यवादी एव नास्तिक आदि दर्शनो के मन्तव्य प्रस्तुत करके पुन: प्रभु के मामन अपनी उलझन रखी है। जिसका उत्तर प्रम ने निष्पक्षरूप से दिया कि राग द्वप-मोह आदि से दूर हा कर केवल आत्मतत्त्व मे डुबकी लगाओ, सभी वादविवादो को छोड कर एकमात्र वात्मध्यान मे लीन हो जाओ । अन्त में, धीआनन्दघनजी ने प्रभु से आत्मतत्त्व को पाने की कृपाप्रार्थना की जिस कृपा से सच्चिदानन्दमय शुद्धात्मस्वरूप मोक्षपद का लाभ प्राप्त होने की आशा भी प्रगट की है । N
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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