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________________ ४४४ अध्यात्म-दर्शन अन्यो, शास्त्रो या गुरुओ मे नही हो पाता । उसका कारण यह है कि पोथियां, ग्र थ या शास्त्र अपने आप मे मूक होते हैं, वे किसी को वोल कर कुछ नहीं कहते, परन्तु अपनी निमल प्रजा, जिज्ञासा एव सरलबुद्धि ही सत्यासत्य का निर्णय कर सकती है । जव बुद्धि पर राग, द्वेष, मोह, पक्षपात, स्वार्थ या लोभ का पर्दा पड़ा रहता है, तब तक तत्त्व का सही निर्णय नहीं हो सकता । जैसे वंद्य द्वारा रोगी को रसायण दिये जाने से पहले उसकी मलशुद्धि की जानी भावश्यक होती है, वैसे ही शुद्ध यात्मतत्त्व को जानने के लिए आत्मा, मन एव बुद्धि पर लगे हुए विभिन्न आवरणो-मलो को दूर करना आवश्यक है। आत्मा मे (मन, बुद्धि एव हृदय मे) जब तक गग का जोर रहता है, तब तक व्यक्ति निष्पक्ष निर्णय नहीं कर पाता । राग के कारण वह हर वस्तु पर अपनेपन की या अपने पुरानेपन की छाग लगाने लगता है, अपनेपन मे ममत्त्व, मेरेपन, महत्त्व, अहकार, अपनी जाति आदि का मद, स्वार्य आदि गर्मित होते है । अत उसके कारण बडे बडे साधक यथार्थ तत्त्वनिर्णय नही कर पाते। यह राग की ही कृपा है कि जामाली जैसे उच्च साधक ने अपने मत की अलग प्ररूपणा करके आवेश मे आ कर स्वमत की स्थापना की। यही हाल गोशालक आदि का था । आत्मतत्त्वज्ञान मे दूसरा बडा बाधक कारण द्वेष है। जब व्यक्ति को किसी अमनोन या अनिष्ट वस्तु या व्यक्ति के प्रति एकान्तरूप में घृणा उपेक्षा, उदासीनता या रूखापन अथवा अरुचि हो जाती है अथवा किसी व्यक्ति या सस्या के प्रति ईर्ष्या या पूर्वाग्रह हो जाता है. तो वह उमके प्रति बेरूखी या हे पदृष्टि रखने लगता है, और नहीं तो उसकी तरक्की देख कर तेज प पैदा होता है। इसलिए द्वेष भी आत्मतत्त्व के जानने मे विघ्न है। तीसग वाधक कारण है- मोह । मोहमोहित, मानव कल्याण-अकल्याण भले. बुरे या कर्तव्यावर्तव्य का भाव नहीं कर सकता । वह मोहवश बुराई को भी अच्छाई मानता है, जहर को भी अमृत मानता है, कुरूढि को भी सुरुढिब, अनिष्ट को ईष्ट मानने लगता है । जमे आँन्त्र मे रतोधी हो जाने पर सब चीजें लाल लाल या रगीन दिखाई देती है। वैसे ही आत्मा पर मोह का रोग लग जाता है, उसे आत्मा के विषय मे सीधी और सच्ची वात उलटी लगती है, दुखकारी परिग्रह उसे सुखकारी लगता है, विषयो की आसक्ति, जो दुखकारक है, वह सुखदायक-सी लगती है, कपायो का शत्र ताभरा स्वभाव उसे मंत्री-पूर्ण लगता
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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