________________
परमात्मा से आत्मतत्त्व की जिज्ञासा
४३६
सत्यवादी मनुष्य के द्वारा बतलाने पर कि 'गाडी पास मे ही है, इससे उस अवे को मालूम हो जाता है कि गाडी मेरे पास ही है । क्या वह अधा तब उस गाडी के अस्तित्व मे इन्कार कर सकता है ? कदापि नहीं। क्योकि स्पर्श से, आवाज से, प्रामाणिक पुरुष के वचन से, शाब्दप्रमाण से एव अनुमानप्रमाण से उसने गाडी की जानकारी कर ली है। इसके बावजूद वह आंखो से गाडी न देखने के कारण हठपूर्वक इन्कार करता है, तो उसकी जिद्द ही कही जाएगी। इसी प्रकार चार्वाकमतवादी नास्तिक की नजर मे कदाचित् पचभूतो से अतिरिक्त आत्मा न आए, परन्तु उससे आत्मा के अस्तित्व या उपस्थिति से इन्कार कैसे किया जा सकता है । क्योकि आत्मा अनुमान, आगम, आदि प्रमाणो अनुभव आदि से ज्ञात होता है ? चारभूत को ही आत्मा मानने से अनेक दोष आते हैं । इसलिए मात्मा के लिए चाहे वे हठपूर्वक इन्कार करें, क्या उससे दुनिया मे आत्मतत्त्व अभाव या अतिस्त्व हो जाएगा । मत मनुष्य या पशु मे चारो भूत होते हुए भी वह चलता फिरता क्यो नही ?' इससे मालूम होता है, इन चार भूतो से अतिरिक्त कोई आत्मा नाम का पदार्थ है, जिसकी शक्ति से इन्द्रियाँ, मन या शरीरादि काम करते हैं ।
वर्तमान भौतिक विज्ञान भी प्राय. प्रत्यक्ष को मान कर चलता है, परन्तु वह पूर्वज आप्तपुरुषो की रची हुई थ्योरी पर से पहले पहले प्रेक्टिकल एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) करता है, अनुमानप्रमाण से भी काम लेता है, इसलिए वह आत्मा का सर्वथा इन्कार करे, ऐसा जिद्दी नहीं है । युक्तियो से समझाने पर आधुनिक विज्ञान मात्मतत्त्व के विषय मे मान भी सकता है । अत इन भौतिकवादियो के प्रवाह मे न बह कर प्रत्येक अध्यात्मसाधक को आत्मताव की छानबीन अवश्य करनी चाहिए।
इस प्रकार श्रीआनन्दधनजी आत्मा के विपय मे विविध दार्शनिको की . अटपटी मान्यताओ को प्रस्तुत करके उनकी बात क्यो सच नही लगती ? क्यो गले नहीं उतरती ? इसे भी साथ ही साथ निवेदन करके पुनः भगवान् के . चरणो मे प्रार्थना करते है -"आपने जिस प्रकार के आत्मतत्व को सच माना हो, उसके विषय मे बताइए । अव श्रीवीतराग परमात्मा इसके उत्तर में क्या कहते हैं, यह अगली गाथा मे पढिए