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अध्यात्म-दर्शन
महाभूतो के सिवाय आत्मा नाम का कोई पदार्थ जगत् में है ही नहीं । इसलिए चार भूतो का समूह हो आत्मा है । यह चार्वाक का मत है। चार्वाक प्रत्यक्ष. वादी है। वह कहता है - आत्मा नाम का कोई पदार्थ प्रत्यक्ष दिखाई तो देता नही । न कोई परलोक वर्गह प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं, और उक्त ४ भून तो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। जैसे गोवर, गोमूत्र, आदि पदार्थो के एकत्र होते से हो विच्छू वन जाता है, अथवा Chemical Compound के मिलने से एक दवा वन जाती है । वमे ही इन चार भूतो का सयोग होते ही आत्मा का प्रादुर्भाव इन में से होता है । और इन्ही चारभूतों के खत्म होते ही आत्मा भी खत्म हो जाता है। बस, यही आत्मा है। इसके अलावा कोई आत्मा प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता । उनने पूछा जाय कि मात्मा जव भूतो के नष्ट होते ही यही नष्ट हो जाता है तो उसने जो शुमाशुभ कर्म किये है, उनका फल कब, और किसको मिलेगा? अगर कहे कि फन यही मिल जाता है, तव तो मुक्ति के लिए को जाने वाली या असत्यादि से निवृत्त होने और न होने वाले व्यक्तियो का धर्माचरण, जप-तप आदि व्यर्थ हैं, फिर तो पापकर्म करने वाले को भी कोई खटका नहीं रहेगा, क्योकि आत्मा का फिर कुछ खेल है, वह यही पर है, परलोक मे नहीं, ऐना माश्वासन मिल जाने के कारण व्यक्ति क्यो धर्माचरण शुद्धात्मन्मण नादि करेगा? वह नि शक हो कर पापकर्म करेगा । क्योकि चार्वाक की उक्ति उन्हे प्रेरणा देती है-"जब तक जीओ । सुख से जीओ । कर्ज करके घी पीओ। मृत शरीर के राख हो जाने पर उसका पुन, आगमन नही होता, यही वेल खत्म हो जाता
इसका खण्डन श्रीआनन्दघनजी इमी गाथा के उत्तरार्द्ध से करते हैं कि मधा आदमी एक गाड़ी पर बैठ कर मुसाफरी कर रहा है। रास्ते मे ही उससे किसी ने पूछा-"क्यो सूरदामजी ! गाडी देख रहे हो न ?" मगर वह गाड़ी से इन्कार करता है, अथवा उसकी नजरो मे गाडी नहीं दिखाई देती तो क्या गाडी नही है ? इसमें गाडी का तो कोई दोय नहीं है। किन्तु तर्क यह है कि उस गाडी को चाहे वह अधा आँखो से न देख सकता हो, परन्तु हाथ के स्पर्श से, गाडी की बह-खड आवाज से, अथवा किसी विश्वस्त
यावज्जीवेत् सुख जीवेत्, ऋण कृत्वा घृतं पिवेत् ।' भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत ? "