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________________ दोपरहित परमात्मा की सेवको के प्रति उपेक्षा ४०१ अनुमान लगा लेते हैं कि आप बिल्कुल चुप हैं या विल्कुल मकेतरहित हैं,, इसलिए आपका उन सेवको के प्रति वर्तमान मे उपेक्षाभाव है, जिन्होने लाखो करोड़ो वर्षों तक आपकी सेवा की थी, आपकी सेवामे वे रात-दिन रह रहे थे,, आपको एक क्षण भी अकेला नहीं छोडते थे । मेरा सकेत उन सेवको के प्रति है, जिनसे आपने अब एकदम मुख मोड लिया है ? आप बडे आदमी है, महान् पुरुष हैं, क्या आपके लिए अपने सेवको को एकदम छिटका देना, और अपने भक्तो को भी उनके प्रति तिरस्कार करने की प्रेरणा करना शोभास्पद है। जो (रागद्वेपादि) आपके अत्यन्त निकटवर्ती थे, उन्हे बिलकुल दूर ठेल देना और जो आपसे दूर-दूर रहते थे, उन्हे अपने नजदीक ले लेना, उनसे आत्मीयता स्थापित करना, क्या आप जैसो के लिए न्यायोचित है ? माना कि आप महापुरुष हो गए और वे वेचारे एकदम नीची कोटि के रह गए, पर उन्हें ठुकराना तो नहीं चाहिए था, उन्हें उचित स्थान तो आपको देना ही चाहिए था? परन्तु आपने उन्हे उचित स्थान देना तो दूर रहा, उन्हें अपने पास भी नहीं फटकने दिया, आपने तो उनकी जहे ही काट दी, उन्हे अपने पास से हटा दिया सो हटाया ही, अपने भक्तो को भी हिदायत दे दी कि वे भी उन्हें किसी प्रकार की तरजीह न दें, किसी प्रकार से अपनाएँ नही, जो उन्हे अपनाएगा, वह मेरे तीर्थ या धर्मचक्र का अनुयायी नहीं रह सकेगा, रहेगा तो भी उसका स्थान और दर्जा नीचा होगा ! आप जानते ही हैं कि जो सेवक वेदिल हो जाता है, वह दुश्मन का-सा काम करता है, आपके वे पुराने तथाकथित सेवक अब आपके शत्रु बन गए और आपके भक्तो या अनुयायियो ,को सता रहे हैं, आपके साथ वैर का बदला उनसे ले रहे है। एक वात और है, आपने जिन सेवको को उपेक्षित समझ कर निकाल दिया, उन्हें दूसरे सामारिक जीव या मिथ्यादृष्टि देव बहुत ही आदरसम्मानदेते हैं, मगर आपने तो उन्हे जडमूल से नष्ट कर दिया और कह दिया, 'तुम्हे कही स्थान नहीं मिलेगा ।, क्या वर्तमान मे आपके ऐसा करने से, आपकी सुन्दर शोभा होती है ? अथवा वर्तमान स्थिति में उनके प्रति ऐसा करने मे ही आपकी सारी शोमा है ? पहले उन्हे आदर देने में ही आपकी सुशोभा थी, अब उन्हे सर्वथा छुट्टी दे देने मे ही आपकी सारी शोभा है ? यह सच है कि पुराने से पुराने सेवक होते हुए भी यदि वे अपना' अहित करते हो,
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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