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________________ ३६६ • अध्यात्म-दर्शन साधु-साध्वी, श्रावक बोर धाविका, इन चारो धर्माचरण करने वाले माधकों । के सघ (नमूह) को धर्मतीर्थ माना गया । नदी या तालाव आदि पर बंधे हुए घाट को भी तीर्थ कहते हैं । घाट वा जाने पर प्रत्येक व्यक्ति नदी या तालाब के पानी का आसानी से उपयोग कर सकता है, उसमे तर भी सकता है। उमी प्रकार धर्म का वाट तीर्थ कर द्वारा बांध दिये जान पर उन धर्मतीर्थ के के माध्यम से प्रत्येक भव्यजीव धमल्पी जल का आमानी से सेवन, आचरण और उपयोग कर सकता है और उस परमधर्म के द्वारा तैर भी सकता है इमोलिए नापने केवल अपना ही जात्म-कल्याण नहीं किया, केवल स्वय ही नही तिरे, जगत् के जिनामु भयजीवों का भी इस धर्मतीर्थ की स्थापना करके कल्याण किया और उन्हें भी मनारमागर से तारा । इसी प्रकार भगवान् ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। धर्मचक्र ने सूर्य के चक्र से दसगुनी भव्यता होती है। तीर्थकर भगवान के मुक्ति पधारने के बाद भी उनका धर्मचक्र ममार के लिए आदर्श होता है वह धर्मचक्र अपनी शरण में आने वालो को चारों गतियो का अन्त कर देता है। धर्मतीर्थ के आश्रय का फल प्रभो । आपके तीर्थ के अस्तित्व का फल जगत मे सारभूतरूप उत्तमतत्व का प्राप्त होना है जयवा तीर्थ का आश्रय करने का फल नारभूत तत्वो का वोध होना है। जीव, अजीव आदि नी तत्वो का ज्ञान जोर उनमे से हेय और उपेक्ष्य का त्याग, और उपादेय और ज्ञव का स्वीकार, तथा उपादेय एव शेयर तत्वो पर श्रद्धा रखना, यही तीर्थ प्राप्त करने का उत्तम फल है। और परम्परागत फल ससार-सागर के पार हो कर मोक्ष प्राप्त करना है माधु साध्याश्रावक-श्राविकारूप चतुर्विध तीर्थ का आप जैसे महापुरुष भी 'नमो तित्यस्त कह कर नमस्कार करते हैं, ऐसे नीर्थ को मैंने प्राप्त किया है, इसे नमवार । करके उसकी सेवा कर सकं, वही मेरा जहोभाग्य होगा। ऐसे तीर्थ कावा- '' कार करने के बाद तो बापधी को मैं अपने आदर्श नाय (स्वामी) के रूप मे स्वा. कार करू', उसका अनुसरण कहें और आपके परमधर्म को प्राप्त करके आत्मा. १ 'धम्मतित्ययरे जिणे-लोगस्ससूत्र १
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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