SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ अध्यात्म-दर्शन अर्थ हे जगन्नाथ प्रभो ! आपके साथ मेरी प्रीति का वर्तमान मे लक्ष्य एकपक्षीय (एकतरफी) है, व्यवहारनय तफ है; अथवा आपके साथ मेरा प्रेम एकतरफी है, इसे देख कर भी मुझ पर कृपा करके मेरा हाथ पकड़ कर आप अपने चरणकमल के नीचे रखना, अयवा आप अपने चरण (सामायिक आदि चारित्रभाव) मे पकड कर रखना, वहां से जरा भी खिसकने न देना। भाष्य परमात्मा के साथ एकपक्षीय प्रीति श्री आनन्दघनजी पूर्वगाथा मे निश्चयनर का लाभ समझने के बाद निश्चयनय के साक्षात्प्रतीक वीतराग प्रम के साथ एकत्व साधना चाहते हैं, लेकिन अपनी निवलता को भी वे प्रकट कर देते हैं कि श्रीअरहनाथ प्रभो | मेरी प्रीति तो आपके साथ एकतरफी है । उसका कारण यह है कि आपके और मेरे बीच मे काफी अन्तर है । मैं निश्चयदृष्टि को मानता हुआ भी व्यवहारदृष्टि को मुख्यता देता हूं, जबकि आप तो एकमात्र निश्चयनय के मूर्तिमान प्रतीक हैं, व्यवहार से विलकुल दूर, अतिदूर | इमलिए आपको और मेरी प्रीति कैसे टिकेगी? 'समानशीलव्यसनेषु सख्यम्' इस नीतिसूत्र के अनुसार आपकी और मेरी मंत्री या प्रीति टिकनी कठिन है। क्योकि समान शील और समान स्वभाव वालो मे आपस मे मैत्रीभाव शोभा देता है, और मैं अपनी बात आप से क्या कहूं ? आप तो जानते ही है कि मैं अभी तक रागी-द्वेषी हूं, आप वीतराग, द्वेषरहित हैं। मैं हास्य-रति आदि में फंसा हमा हूँ, आप इनसे बिलकुल रहित हैं, मैं वेदी है, आप निर्वेद हैं, ऐसी परस्परविरुद्ध मेरी आपके प्रति प्रीति है। इनके बावजूद भी मैं आपके प्रति चाहे जितना प्रेम करूं', फिर भी वह एकपक्षीय है, क्योकि आप तो राग-द्वे परहित होने के कारण किसी के प्रति प्रेम करते नही, इस दृष्टि से भी आपके प्रति मेरी प्रीति एकपक्षीय है, मैं व्यवहारदृष्टि से आपके व मेरे बीच मे कई पर्यायो व विकल्पो का फासला देख रहा हूँ परन्तु आप चाहे जितने बड़े जगत् के नाथ हो, निश्चयनयदृष्टि ने तो मैं भी आपके जैसा ही हूँ, शुद्ध-बुद्ध है। इसलिए आप मेरी एक प्रार्थना अवश्य स्वीकार करना- "हे जगन्नाथ (अरहनाथ) भगवन् । आप जगत् के प्राणिमात्र के हितकर्ता हैं, सवका क्षम-कुशल करने वाले हैं,
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy