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________________ वीतराग परमात्मा के धर्म की पहिचान ३६१ आत्मस्वरूप धान मे आरूढ हो जाता है, तब शरीर की श्वास-प्रश्वास क्रिया आदि सूक्ष्मक्रिया भी बंद हो जाती है । इस दशा को परम निर्विकल्प भी कहते हैं, क्योकि इस दशा में कोई भी भूल, सूक्ष्म, कायिक, वाचिक या मानमिक क्रिया नहीं की जाती। इस आत्म-स्थिति को प्राप्त कर लेने के वाद उनका परिवर्तन नहीं होता। सम्भव है, इत्ती अर्थ का अनुसरण करते हुए इस गाथा मे कहा गया है-'शुद्धनयन्त्यापना सेवता नवि रहे दुविधा साथ रे' निष्कर्ष दोनो का उपयोग परन्नु मात्रक जब तक ससारी है, अयवा इतनी उच्चभूमिका तक नहीं पहुंचा है, वहानक वह व्यवहार को विलकुल फैक नही देगा। उने अपनाये बिना कोई चारा ही नहीं है, परन्तु कोरे व्यवहार को पकड कर चलेगा तो उससे कोई लाभ नहीं है, जब साधक (छमस्य) शुद्ध निश्चयनय को ले कर चलेगा तो उसे यह निर्णय करना पडेगा कि आत्मा का मोक्ष (कर्मबन्धन से छुटकारा) कंमे हो', और उसी प्रकार का व्यवहार अपनाना पटेगा। 'ज्ञानक्रियाभ्या मोक्ष' इस सूत्र के अनुसार समझ-(ज्ञान) पूर्वक जो क्रिया मोक्षसाधक होगी, मसारपोषक नहीं होगी, उसे ही अपनाएगा । अन्यथा, बिना ज्ञान के केवल क्रियाएँ करने से समार मे जन्ममरण का चक्कर नही मिटेगा। मतलब यह है कि केवल व्यवहार की रक्षा के लिए चाहे जितनी क्रियाए की जाएँ. उनमे वास्तविक प्रयोजन मिद्ध नही होता । आत्मिक दृष्टि से यथार्थ एव म्यागरी लाम नहीं होता । वह तो ज्ञानपूर्वक क्रिया की जाय, तभी मिलता है । अत शुद्ध निश्नयनय और व्यवहारनय दोनो का समन्वय करना चाहिए । इन प्रकार आत्मम्वरूप का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए निश्चयदृष्टि के साथ ज्ञानपूर्वक व्यवहार का मयोजन कर लेना चाहिए। पौद्गलिकभाव और आत्मिक भाव इन दोनो में अन्तर को ध्यान म रखते हुए निश्चयनय से सिर्फ आत्मिकभाव ही उपादेय समझना चाहिए, ताकि किमी प्रकार की दुविधा या गडवड न रहे मोर अन्त में अपना कार्य सिद्ध हो । इस पर से श्रीआनन्दघनजी अन्त मे प्रभु मे शुद्ध निश्चयदृष्टि की प्रार्थना करते हैं एकपखी लख प्रीतनी, तुम साथे जगनाथ रे। कृपा करी ने राखजो, चरणतले यही हाय रे ॥धरम०॥८
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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