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अध्यात्म-दर्शन
भारी पोलो चीक णो कनक, अनेक तरंग रे । पर्यायष्टि न दीजिए एक ज कनक अभगरे ॥ धरम० ४ ॥
अर्थ वजन मे भारी-रग मे पीला, गुण से चिकना (स्निग्ध) नोने के ऐसे अनेक प्रकार दिखाई देते हैं, परन्तु पर्यायाथिक नय की दृष्टि न दें। द्रव्यदृष्टि मेंदेखें तो वह अभग (अखण्ड = अदस्प) द्रव्याप में एक नोना ही दिवाई देता है।
मोना एक : प्रकार अनेक पूर्वगाथा में कही हुई बात को दूगरी तरह से सोने का दृष्टान्त दे कर आनन्दघनजी समझाते हैं- सोने के माय पर्यायरूप मे तीन गुण निहित हैभारीपन, पीलारग और चिकनापन । मत नब यह है कि सोना तीन में वजनदार धातु होता है। सोने की यह विशेपता है कि वह दूसरे धातुओ की अपेक्षा वजन में भारी होता है। उसका रंग भी विशिष्ट प्रकार का पंला है, जो दूसरे किसी धातु से मिलता नही है । और वह दूसरे धातुओ की अपेक्षा चिकना भी अधिक होता है, सोना दूमरे धातुओ के बजाय नरम और लचीला होता है । इसी कारण उसके परमाणु एक दूसरे से चिपक जाते हैं, जल्दी टूटने नही । एक ही सोने के हार, करधनी, ककण जादि अनेक आभूपण बनाये जाते है। जिनके नाम और आकार भिन्न-भिन्न होते है, परन्तु उन मत्रमे जो सोना होता है, उसे देख-परख कर ही सबकी कीमत आंकी जाती है। सोने के व्यापारी की सोने के विषय मे द्रव्याथिक दृष्टि है, मगर आभूषण बनाने वाले सुनार या उन्हे पहनने वाले की दृष्टि मे आभूपण मुख्य होने में पर्यायायिक दृष्टि होती है । कुम्मार घडा, कोठी, सुराही वगैरह बनाने के लिए जगल मे मिटटी लेने जाता है, तब वह घडे, कोठी आदि को मिट्टी ही देखता है, मिट्टी ही उसके खयाल मे वसी रहती है । मगर कुम्हार के यहाँ से बर्तन खरीदने वालो की दृष्टि मे मिट्टी नहीं आती, घडा आदि वर्तन ही आते है। इसलिए कुम्हार की दृष्टि द्रव्याथिक होती है, जबकि ग्राहक की दृष्टि पर्यायायिक होती है । इमलिए पर्यायष्टि को छोड़ कर एक और अबण्ड सोना ही है, इसके भेद