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________________ वीतराग परमात्मा के धर्म की पहिचान ३८१ सबका प्रकाश सूर्य मे समाविष्ट हो जाता है । वर्तमान विज्ञान का भी यह मत है कि ग्रहो और चन्द्रमा का प्रकाश स्वतत्र नहीं है, वे सूर्य के प्रकाश के बल से प्रकाशित होते है । यही कारण है कि सूर्य के उदय होते ही इन सवका प्रकाश फीका पड़ने लगता है। इसीलिए कहा गया-जिस प्रकार आकाश के ग्रह, नक्षत्रादि की ज्योति सूर्य के प्रकाश में है, उसी प्रकार सामान्य ज्ञानरूप दर्शन (अथवा तत्त्वार्थश्रद्धानरूप दर्शन), विशेषज्ञानरूप ज्ञान और सामायिकादि चारित्र, सबमे आत्मा की शक्ति ही है। इन सबकी शक्ति का समावेश भी यात्मा मे हो जाता है। निश्चपनय की दृष्टि से देखे तो ज्ञानदर्शन-चारित्र भी आत्मा से अभिन्न हैं, ये सब आत्ममय ही हैं, एक आत्मा ही भासमान होता है। मतलब यह है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र वगैरह के अनेक पर्याय होते हैं । दर्शन से निराकार ज्ञान होता है, 'यह मनुष्य है या पशु ?' वगैरह विशेष बाते ज्ञान से जानता है । सामायिक चारित्र से ले कर यथाख्यातचारित्र तक अनेक पर्याय जानता है । परन्तु वे सब एक ही आत्मद्रव्य को बताते है, उसे ही उद्देश्य करके होते है। जैसे पर्याय अनेक हैं, आत्मिक द्रव्य एक ही है । उसी के ज्ञान-दर्शन-बारित्र आदि अनेक पर्याय होते हैं । वे अन्त मे एक आत्मा मे ही समा जाते हैं । ये सब एक आत्मिक द्रव्य के ही परिणाम हैं, आत्मा के गुण है, आत्मा के ही ये सब पर्याय है, यह भलीभाति जान लो। आत्मा न हो तो उसके पर्याय भी नहीं होगे, यो समझ कर एक आत्मिक द्रव्य की महत्ता समझ लो। जैसे सभी प्रकार के तेज-फिर वे चाहे तारो के हो, चन्द्रमा के हो, सूर्य के तेज मे समा जाते हैं, वैसे ही ज्ञानदर्शन-चारित्र के अनेक पृथक्-पृथक् पर्याय होते हैं, पर उन सबका समावेश एक आत्मानुभव मे हो जाता है । इससे यह भी घोतित हो जाता है कि ज्ञानदर्शनचारित्र की शक्ति शुद्धात्मानुभव -स्वसमय मे समाविष्ट हो जाती है, किन्तु अपरज्योतिरूपपरसमय का उसमे समावेश नहीं होता। पर्याय चाहे जितने हुआ करे, पर वे मूल द्रव्य एक आत्मा से सम्बन्धित हैं, यह वात भनी माँति हृदयगम कर लेनी चाहिए । आत्मा एक है, पर्याय अनन्त हैं । आत्मा के अनन्त पर्याय होते हुए भी उसे एक ही द्रव्य समझना, यही आत्मानुभव (स्वसमय) की, आत्मा को भलीभांति पहिचानने की कुंजी है । अगली गाथा मे इसी बात को और स्पष्ट कर रहे है
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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