SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० अध्यात्म-दर्शन पचाने और उतारने से ही लाभ होगा । वह नाम कोई सासारिक लाम नहो, अपितु आनन्दधनम्प परमात्मरद को प्राप्त और जगदवन्दनीयतापूजनीयता, तीर्थकर के नमान उत्कृष्ट नम्माननीय पद गे सम्मानित होने की सम्भावना भी है। साराश इस स्तुति मे श्री आनन्दघनजी ने वीतराग श्रीशान्तिनाथ प्रभु से पान्तिस्वरूप के जान, एव उसकी पहिचान के बारे में अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत करके प्रभु के श्रीमुख से (नि मृत आगमो द्वारा) सक्षेप मे शान्ति का समग्र दर्शन ६ गाथाओ में प्राप्त किया है । वल्कि यो कहना चाहिये कि उनकी अन्तरात्मा मे शान्ति का समग्र स्वरूपदर्शन अन्त स्फुरित हुआ है अन्त में, कृतज्ञताप्रकाशन के बाद उन्होंने परमात्मा के साथ बहत स्थापित करके परमशान्ति के अधिष्ठान स्वात्मा को नमस्कार किया है और अन्तिम गाथा में उसका फल बताया है-शान्तिस्वरूपदर्शन पर चिन्तन, मनन, शुद्धप्रणिधान करके जो उसे संस्कारबद्ध कर लेगा, उसे परमात्मपद-प्राप्ति तथा बहुपूज्यता प्राप्ति होगी।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy