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मध्यात्म-दर्णन
हे आत्मन् की इच्छा हुई । तुम्हाहो कि ऐसा गम्भीर
भाष्य
प्रग्नकर्ता को धन्यवादनापन धर्मशान्यो या आध्यात्मिक गन्यो की विशिष्ट नीति है-जिनामु का आदर करना, जिसने धर्म और धर्मी का महत्व बढे, विशिष्ट ज्ञानप्राप्ति के लिए जिज्ञासु प्रयत्नशील हो। यहाँ भी उमी नीति का अनुसरण किया गया है।
हे भात्मन् । तुम धन्य है कि तुम्हे शान्तिनाथ भगवान की आदर्श शान्ति का स्वरूप जानने की इच्छा हुई । तुम्हारे मन में ऐसा प्रश्न उठा, यह भी मौभाग्य की बात है । तुम बडे भाग्यशाली हो कि ऐसा गम्भीर सवाल तुम्हें सूझा । जो आत्मा भव्य और सम्य दृष्टि होता है, अथवा अध्यात्मरनिक तत्वजिज्ञासु होता है, या जिम शान्ति प्राप्त करनी होती है, उसके मन में ही ऐने प्रश्न उठने है । बहुत से लोग जिज्ञासु बन कर कोई शंका उठाते है, उन्हें कई अध्यात्मज्ञान से अनभिज या मात्मिक चारित्र दौर्बल्वयुक्त व्यक्ति सहसा दबा देते है, उसे नास्तिक, काशील या अज्ञानी कह बैठते हैं, और उसको अध्यात्मज्ञान में वचित कर देते हैं । परन्तु सम्यग्दृष्टि, तत्वत्र एव समत्वयोगी पुरुप जिज्ञासु की जिज्ञासु को प्रोत्साहन देते हैं, कि तुमने बहुत ही अच्छा सवाल उठाया । वे मानते है कि इससे हमारे ज्ञान में वृद्धि ही होगी, दूसरे व्यक्ति भी इस ज्ञान मे लाभान्वित होगे । ऐने जिज्ञासु अपने मन मे अनेक प्रश्नो को स्थान देते है।
जिज्ञासु श्रोता के दो गुण : एकाग्रता और धैर्य आध्यात्मिक दृष्टि मे शान्ति के विषय मे जो सुनना चाहता है, उस जिज्ञासु श्रोता मे दो गुण होने आवश्यक है-एकाग्रता और धैर्य । वक्ता जब कोई वात कहता है या किसी गम्भीर विपय का प्रतिपादन करता है, तव श्रोता मगर एकाग्रता पूर्वक न सुन कर अन्यमनस्क हो कर सुनता है तो वह विपय को भलीभांति ग्रहण नहीं कर सकता, न समझ सकता है । अधूरी ममझ से कई वार श्रोता उटपटाग बातें कह कर या तर्क-वितर्क करके भ्रान्ति फैलाता है या मनगढत बातें करता फिरता है । श्रोता का दूसरा गुण है- धैर्य । यदि श्रोता मे किती प्रतिकूल वात के सुनने का धैर्य नहीं होता तो वह वीच मे