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________________ जिस धर्म का समर्थन किया गया था, उस धर्म के सम्बन्ध में अगली गाया गे जगत् के लोगो की मन यिति प्रगट करते हैंधरम धरम करतो जग सह फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म, जिनेश्वर । धरम जिनेश्वर चरण ग्रह्या पछी, कोई न बांधे हो कर्म, जिनेश्वर ॥ धर्म० ॥२॥ अर्थ संसार मे सब लोग अलग-अलग नामो से परुटे हुए विभिन्न तथाकथित धर्मों को धर्म धर्म कह कर पुकारते हैं, परन्तु चीतगग प्रमो ! यही दुग है कि वे धर्म का रहस्य नहीं जानते । आत्मधर्ममय श्री धर्मनाय वीतरागप्रभु ो चरण (आत्मस्वभावरमणरूप धर्म) का ग्रहण कर लेने पर भवन्त्रमण कराने वाले वमों का बन्ध कोई भी भक्त नहीं करता। भाष्य विविध सासारिक लोगों को धर्म की रट कई लोग कहते हैं कि कर्ममुक्त करने वाले (मूत्र-चारियरूप या आत्मरमणतारूप) धर्म का आचरण तो बहुत ही आमान है, इस मे कुछ भी करने-घरने की क्या जरूरत है ? इगी कारण बहुत-से लोग धर्म धर्म चिलाया करते हैं । वे वात बात मे ईमान, धर्म आदि को सौगन्ध जाते है, जब भी कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति प्रसिद्धि या तरक्की पा जाता है, तव ऐसे घमंवारी लोग महमा चिला उठते हैं-'धर्म खतरे मे' है । और सिर्फ बाह्यक्रियाकाण्डो या साम्प्रदायिक कदाग्रहो मे रचेपचे लोग अमुक धर्मस्थान मे जा कर क्रियाएँ करके या कुछ पुण्य की प्रवृत्ति करके अपने आपको आश्वासन दे लेते हैं कि हमने धर्म कर लिया।' और इसी धर्म की ओट मे वे दूसरो को ठगते हैं, चकमा दे देते है । परन्तु वीतराग परमात्मा के प्रति जमिनप्रीतिरूप सच्चा वीतरागतारूप धर्म तो आत्मधर्म है, जिसका लक्षण 'वस्तु वा स्वभाव बताया गया है। इसी प्रकार जगत् के प्राय सभी लोग धर्म-धर्म चिल्लाते हैं, कोई कहता है-मैं जैन हूं, कोई कहता है-मैं बौद्ध हूं। कोई अपने को शंत्र बताता है, यो तो प्राय मभी कहते हैं, और ऐसे सम्प्रदायगत धर्म के लिए लडने-मरने को तैयार हो जाते हैं । परन्तु वे प्राय धर्म के मर्म को नहीं जानते, और न वे वास्तविक धर्म की
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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