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________________ २१४ वाध्यात्ममशन लना मूल्य नही होना । दम तालिय. गुरा मैगी मी वान अनिध्यता किया गया है-"जो' आत्गशान-दर्शन से गम्पनी, सयम र प में हैं, जो इस प्रकार के गणो रो नमायक्त हो, उसे गयगी को हो ना हो।" ऐसा आत्मज्ञानी निस्पृह भमण, जो बात गी होगी, ना मान्यता होगा, जैसी देखी-गुनी-गोची-रामती या गनुमान की होगी, उगी रूप में लोगो के सामने प्रगट करेगा। वह भूठे गुलाहिने, तागलपेट, चापलूसी या अपनो के पक्षपात से दूर होगा। ऐमा मुनि ही आनन्दघनमत यानी मोक्षमार्ग का साथी या मागणी है सचिदानन्दघन परमात्मा के मत का संगी-साथी है । श्रीआनन्दघनजी नि गृह माध थे। उन्होंने अपना कोई मत, पंथ या सम्प्रदाय नहीं चला या इसलिए 'मत' का अर्थ यही सिई 'विचार' समझना चाहिए, सम्प्रदाय या परम्परा नहीं । वे योगी एव भौतिक प्रलोभनो से दूर, सच्चे मस्त सत थे। उन्होने आत्मज्ञान को पचा व रमा लिया था। क्योकि अनुभवयुक्त आत्मज्ञान से ही कोई मुनि हो सकता है, केवल अध्यात्म के ग्रन्थो की पारिमापिक शब्दावली रट लेने से नहीं, अपितु समताभाव लो जीवन मे रमा लेने से ही कोई श्रमण हो सकता है। ऐसा आत्मनानी माघ ही वस्तु का यथार्थरूप मे कथन करता है। वह आत्मनान ही उपलब्धि करने, दूसरो को समझाने, आत्मज्ञान को जीवन मे रमाने में और अन्त मे, आत्मज्ञान का वास्तविक प्रतिपादन करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। प्रवचनसार और ज्ञानसार मे यमणत्व का लक्षण बताया है कि जो दर्शन, "नाण-दसण-संपन्न, सजये य तवे रय। एय गुणसमाउत्त सजयं साहुमालवे ॥" -दश अ ७ दसण-णाण-चरित्तेसु तीसु जगव समझियो जो दु। एग्गगगतोति मत, मामण्ण तरस परिपुण्ण ॥ -प्रवचनसार आत्मानमात्मन्येव यच्छद्ध जानात्यात्मानमात्मना। शेयं रत्नत्रये ज्ञप्तिरच्याऽऽचारकता मुने. ॥ ~~ज्ञानसार
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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