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________________ विविध चेतनामो की दृष्टि से परग आत्मा का ज्ञान २५५ जान और चारित्र तीनो गे एका साथ एकाग्न व गमुद्यत रहता है, उसका यमणत्व परिपूर्ण माना गया है। निश्चयदृष्टि रो माना गया है कि जो आत्मा के द्वारा आत्मा के सम्बन्ध में शुद्र आत्मा को जानता है, उगे ही मुनि समझो। उसी मुनि के गम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रम्प रत्नत्रय मे यानी श्रद्धा, बोध और आचरण (आचार) मे एकरूपता समसनी चाहिए। सारांश इस स्तुति मे श्रीआनन्दघनजी ने परमात्मा के स्वरूप का भलीभाति गुणचित्रण करके साघकभक्त को ज्ञानचेतना, कर्मचेतना और कर्मफलचेतना रूप चेतनात्रय को आत्मा का अग बना कर आत्मा की शुद्ध ज्ञानचेतना पर चलना तथा कर्म एवं कर्मफलचेतना की केवल जानकारी प्राप्त करना अभीष्ट बताया है। अन्त मे, आत्मज्ञानी की महत्ता बता कर साधक के जीवन मे वस्तुतत्व के यथार्थ प्रकाण (प्ररूपण) और परमात्मा की प्राप्ति को ही सारभूत तत्त्व वतनाया है। SHA
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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