SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविध चेतनाओ की दृष्टि से परम आत्मा का ज्ञान २४५ जव हमारे अन्तर मे राग या द्रुप से किसी क्रिया की स्फुरणा होती है, तव भाववतीशक्ति से आत्मचेतना विविध विकल्प करती है । जैसे यह करू या वह कम ? वह करू या न करूं? क्या करू, क्या न करूं ? इस प्रकार के विकल्पो की जो ध्वनि आत्मा में निरन्तर उठा करती है, वही कर्मचेतना का कारण है। ऐमी चेतना (विकल्पो की स्फुरणा) कही बाहर की नही, हमारे अदर की है । वह अन्तर की चेतना ही कर्मचेतना है । भले ही वाहर मे तदनुस्प कोई क्रिया न हो । अध्यात्मजगत् मे मूल प्रश्न कर्म (क्रिया) का नही है, अपितु कर्मबन्ध का है , जो कमचेतना के कारण होता है। इसलिए श्रीआनन्दघनजी ने स्पष्ट कह दिया कि कर्ता (चेतन या अचेतन। परिणामी परिणमनशील है । परन्तु उन्होंने साथ मे यह भी बता दिया कि 'परिणामो कर्म जे जीवे करिए रे' , कोई भी कर्म जो जीव के परिणामो (चेतना मे उत्पन्न विधिनिषेध के विविध विकल्पो की लहरो) से किया जाता है, उसे ही कर्मचेतना कहते है। कर्मचेतना के समय चेतना के सागर मे विकल्पो का तफान उठता है । तव आत्मा स्वरूप मे स्थिर नही रह पाती । जव आत्मा स्वस्वरूप मे स्थिर नहीं रह पाती, तव कर्मबन्ध के चक्कर मे उलझी रहती है। विकल्पो की लहरें ही कर्मवन्ध का मूल कारण बनती है। यद्यपि आत्मा अपने सहजस्वरूप से शान्तसरोवर के समान स्थिर है , किन्तु जव उसमे कतव्यसम्बन्धी विविध विकलो की उमियाँ उठने लगती हैं, तब वह अशान्त बन जाती है । इस विराट् विश्व मे सर्वत्र लोकाकाश. 'के प्रत्येक प्रदेश में अनन्त-अनन्त कमवर्गणाओ का अक्षय भडार भरा पड़ा है। जव चेतना मे विविध विकल्पो का तूफान उठता है, तब ये ही. कर्मवर्गणाएँ कर्म का रूप धारण करके आत्मा से बद्ध हो जाती है । अनन्त अतीतकाल में ये कर्मवर्गणाएं कर्म का रूप धारण करती और आत्मा से बद्ध होती आई हैं , भविष्य मे भी ये कम का न तव तक लेनी रहेगी, जब तक भावकर्म का सर्वथा क्षय व हो जाय । चू कि कर्मपरमाणुओ के साथ आत्मप्रदेशो का सश्लेप (कर्म) बन्ध कहलाता है। यही कारण है कि जडकर्मो के साथ चेतन की परलक्ष्यी विकल्प शक्ति रहती है। कोई भी कार्य बिना कारण के हो नहीं सकता, भले ही हमे कारण प्रत्यक्ष न दियाई दे । लेकिन कार्य तो अवश्य ही दिगाई देता है । जनकार्गबन्धम्म कार्य के प्रति चेतना का रागद्वेपात्गक विकल्प ही निमित्त,कारण
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy