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________________ २४४ अध्यात्म-दर्गेन आत्मा का एक म्प : कर्मचेतना परमात्मा गे निपचयष्टि से तो जाननेतना ही नती: ननि जय तमा वे चार घानीकर्मो से युक्त होने में बना उनमें गाना गी होती है। वीतराग एव सदेहमुक्त होने पर कर्मचाना नहीं होती। मग 7 गनारी जीवो के कर्मचेतना अवश्य होती है। - प्रश्न होता है कि चेतना तो आत्मा का गुण है और यार्म अपने आप में जड है। इन दोनो का मेल कैसे हो सकता है ? जब जड़ चेतन का मेल नहीं, नव उमे कर्मत्रेतना क्यो कहा गया। इसका समाधान यह है कि निश्चयदृष्टि से सिद्धो की आत्मा में कर्मचेतना नहीं होती। व्यवहारदृष्टि ने सासारिक गगपयुक्त मात्माओ के माथ ही कर्मचेतना का सम्बन्ध है । कर्म को, केवल कर्म मन समझो। क्योकि उसके साथ चेतना भी है। इसी कारण से वन्ध होता है । यदि कर्म के साथ चेतना न हो तो बन्ध नहीं हो सकता। जलती हुई अगरबत्ती के कारग सभी की नाक मे भीनी-भीनी मुगन्ध पहुँची और उन्हें आनन्द माया। पया टूट कर नीचे गिर पडा, इससे एक आदमी का निर फट गया , यहां अगरवनी या पखा , इन दोनो मे से किसी को भी फर्म का वन्धन नहीं होता। ग्योकि ये दोनो जड हैं । जड होते हुए भी उनमे कर्म (निया) अवश्य सम्पन्न हुना; मगर वन्धन नहीं हुआ। निष्फर्प यह है कि जड पदार्थ मे कर्म होते हुए भी उगम चेतना न होने के कारण बन्ध नहीं होता । वन्य वही होता है, जहाँ - चेतना होती है । पखे और अगरबत्ती मे कर्म (निया या चेप्टा) तो है, परन्तु -- चेतना नही है, इसलिए न तो पसे को अगुभवन्ध हुआ और न अगरबत्ती को • ही शुभवन्ध हुआ। अत कर्मचेतना का अर्थ यह है कि जहा चेतनापूर्वक कर्म किये जाय, । उसी से ही शुभ या अशुभ बन्ध होता है । चेतनापूर्वक कर्म चेतन मे ही सम्भव है , इसलिए चेतन में ही बन्ध होता है, और चेतन मे ही मोक्ष हो सकता है । चैतन्यशून्य पुद्गल मे कर्म होते हुए भी बन्ध नहीं हो सकता। यही कर्मचेतना का रहस्य है । परन्तु प्रश्न होता हैं कि कर्मचेतना आत्मा में होती किस कारण से है ?
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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