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________________ २३४ अध्यात्म-दर्शन शब्द के मोह में मत फंसना, क्योकि मोह नी जगत् में गाने वाला । अन अध्यात्म शब्द को मुन कर उनकी जो गौटियां पहने बनाई गः -- निजम्वरूप जे किरिया माधे तेह अध्यातम लहिये रे आरि, नागार तथा नाम, ग्थापना और द्रा अध्यात्मा ज्यागो गाने में भाव-अध्यात्म तुम्हारी बुद्धि को जचे, उंगे अपनाओ। नगी अध्यात्म मान्यों में उक्त शब्द-अध्यात्म मे गुण भी हो गकता है. नही भी हो सकता। नमो की सहायता से जहाँ गुण न हा तो, वहा उसे छोटने की और जहां गुण हो, वहाँ ग्रहण करने की बुद्धि रखना। कोरे अध्यात्मशास्त्र के नाम में प्रभावित मत हो जाना । ' अध्यात्मशब्द का प्रतिपादन करने वाले नथाकथित आध्यात्मिक मे सुद मे अध्यात्म है या नहीं? यह देखना । अन्यथा अध्यात्म की कोरी व्याख्या मे तुम झूम उठोगे, पर आध्यात्मिक के जीवन में पूर्वोन आध्यात्मिकता नहीं होगी , तो तुम्हे भी वह कैसे नार मनेगा जब कि वह स्वयं तर नही सका है ? अथवा इस गाथा का यह भी अयं हो सकता है कि आध्यात्मिक भागरूपी गब्द-अध्यात्म मे में उसका विस्तृत अर्थ नुन कर, अन्त मे निर्विकल्पदगा ही अपनाना । चूंकि भाव-अध्यात्म निर्विकल्पदग्गा प्राप्त करने के लिए ही है। शास्त्र तो अमुक हद तक ही सहायक हो गकते हैं। अन्त में तो निर्विकल्प दशा पर पहुंचना है, जहाँ पहुँच जाने पर उदामीनभाव प्राप्त होने से कुछ भी लेना (ग्रहण) या छोड़ना (हान) नहीं होता। अथवा उग गाया का एक अर्थ यह भी है कि शब्दनय की अपेक्षा में अध्यात्म की भावनाओ-अलगअलग कक्षाओ का भेद जान लेने के बाद त्याग या म्वीकार की बुद्धि नहीं रहती। विपयो के प्रति स्वत ही तटस्थता-उदासीन हो जाती है । अव्यात्मसाधना किसलिए करनी चाहिए तथा उसका प्रयोजन और उच्च ध्येय क्या है ? यह बात श्रीजानन्दधनजी ने 'निविकल्प आदरजो रे' कह कर सूचित की है। १ उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा है - भणता अकरंता य वधमोक्खपइण्णिणो । वायावीरियमेतण समासासेंति अप्पय ॥
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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