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________________ अध्यात्म का आदर्श आत्मरामी परमात्मा २२६ क्रियाकाण्डप्रिय साधक भी वाहवाह कर उठते है, वे उन्हे आध्यात्मिक या आत्मा के खटके वाले माँगने लगते है, और वे स्वयं भी कई बार किसी के द्वारा पूछे जाने पर यही जवाब देते है कि 'हम ये सब क्रियाएँ अपनी आत्मा के लिए करते हैं । परन्तु उनके अन्नर की तह मे आत्मा के लिए वे क्रियाएँ होती नही, वे प्रायः की जाती है-अपनी प्रसिद्धि, किसी पद या प्रतिष्ठा की लिप्सा या किसी स्वार्थलालसा से प्रेरित हो कर । कई साधको के हृदय मे अपनी कठोर नियाओ के फलस्वरूप देवलोक या स्वर्गमुख प्राप्त करने की कामना होती है। अथवा कुछ तथाकथित अध्यात्मिक मनुष्यलोक मे ही लोगो को अपनी तरफ आकर्पित करने के लिए दूसरे साधको को अपने से हीन व निकृष्ट वता कर उनके प्रति लोकमानस मे घृणा फैलाने का काम करते है । अथवा कुँवा-फूंक कर कदम रख कर, मैले-कुचैले फटे-से कपडे, गन्दगीभरा शरीर एव पेरो मे विवाई फट जाने पर भी दवा न लगा कर अपने तथाकथित वाह्य त्याग और वैराग्य की छाप लोगो पर डाल कर आध्यात्मिक कहलाने का प्रयाम करते है। अत श्रीआनन्दवनजी ने 'अध्यात्म' के नाम से दुनिया में प्रचलित वातो मे खरी-खोटी ची वामीटी बता दी कि जो लोग अपने अन्तर मे म्बम्वरूप के लक्ष्य को छोड़ कर सिर्फ स्वर्गादि लक्ष्य की दृष्टि से क्रिया करते है, उनकी वह क्रिया या प्रवृत्ति सच्चे गाने में आध्यात्मिक नही कही जा सकती। स्वर्गप्राप्ति दुनियादार लोगो को आकर्षक लगती है, वे अध्यात्म का सस्ता तुम्खा खोजते फिरते है, इसलिए कई ढोगी साधक उनको चक्कर मे फँसा कर योगादि क्रियाएँ या अन्य उटपटाग क्रियाएँ बता कर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, मगर उनकी वह क्रिया कतई आध्यात्मिक नहीं होती। आध्यात्मिक या अध्यात्म उसे ही कहा जा सकता है, जिसमे तमाम क्रियाएँ या प्रवृत्तियाँ रवरूप के लक्ष्य से की जाती हो । ' अन्य क्रियाएँ और स्वस्वरूपलक्ष्यी क्रिया आध्यात्मिक जगत् मे पांच प्रकार की क्रियाएँ मानी जाती है-(१) विपक्रिया, (२) गरलक्रिया, (३) अननुष्ठानक्रिया, (४) तद्हेतुक्रिया, और अमृतक्रिया । इन पांचो क्रियाओ में विप और गरलक्रिया में किसी न किसी कामना के वशीभूत हो कर गगुप्य निदान करता है , अथवा गिगी को गारने
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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