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________________ अध्यात्म का आदर्ण आत्मरामी परगात्मा २२७ इन्द्रियरामी' अर्थात्-जिन-जिन तोगो को इन्द्रियविपयो के, भोगो के, या मुखमुविधाओ के गुलाम व आसक्त देखो, उन रावको आत्मरामी नही, इन्द्रियरामी समझो। जो मासारिक विषयसुखो को लात मार कर, इन्द्रियविपयो के प्रति अनासक्त हो कर अदीनभाव से अपनी आत्मा मे या आत्मगुण मे मस्त रहते है, क्षमा, मार्दव आदि मुनिधर्म का पालन करते है, वे मुनिगण ही वास्तव में आत्मरामी है। यह वात श्रीआनन्दघनजी मुनियो के प्रति किसी पक्षपात के कारण नहीं कह रहे है। क्योकि मुनिधर्म किसी भी जाति, धर्म सम्प्रदाय, देश, वेय या पथ की बपौती नहीं है, उस पर किसी की मोनोपोली (एकाधिकार) नहीं है, और न ही किसी एक व्यक्ति या जाति आदि का ठेका है। उसे कोई भी, किसी भी जाति, धर्म-सम्प्रदाय, देश, वेप या पथ का व्यक्ति पालन कर सकता है, बशर्ते कि वह दशविध श्रमणधर्मो से युक्त हो । और जो मुनि इस प्रकार से इन्द्रियविपयो मे रमणता (आसक्ति) से दूर होगा, उसे ही आत्मरामी कहा जाएगा। । क्योंकि मुनि पर किसी की आदि का __आत्मरामी का मुख्य लक्षण यह है कि वह कामना (स्वार्थ, लोभ, प्रसिद्धि आदि की लिप्सा, सुख-सुविधाओ की लालसा) तथा काम (पाँचो इन्द्रियो के विपयो की आसक्ति, गुलामी, मूर्छा) से रहित हो, दूर हो, उसे ही केवल आत्मरामी समझो, जो निप्फाम व नि स्पृह हो। __ जीवो के दो भेद है=सिद्ध और ससारी । जो सिद्ध, बुद्ध, मुक्त परमात्मा हैं, वे तो अध्यात्म के चरम शिखर पर पहुंच चुके है। परन्तु जो ससारी है, वे ससार मे ही सुख मानते है, उसी मे मस्त रहते है, वे एक या अधिक इन्द्रियो के विपयो मे आनन्द मानते है, चाहे जिस उपाय से इन्द्रियसुखो को प्राप्त करने की लालसा रखते हैं। इन्द्रियगुख कम होने पर उससे सन्तोप न मान करवे, येन-केन-प्रकारेण नैतिक-अनैतिक रूप से इन्द्रियो के विपयभोगो को भोगते हैं, रात-दिन उनके गुलाम बने रहते है, इसके फलस्वरूप वे ससार के जन्ममरण के चक्र मे फंसे रहते है, उनके ससार-परिभ्रमण का अन्त आता ही नही। एक गति से निकल कर दूसरी मे, एक योनि से निकल कर दूसरी योनि मे जाते हैं। इस प्रकार वे ससार मे चक्कर लगाते रहते हैं परन्तु कई लोग इस भूमिका से बहुत ऊँचे उठे हुए होते है, वे पर्याप्त सुख मिलते हुए भी उन्हे
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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