SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ अध्यात्म-दर्शन निश्चयनय की दृष्टि से विचार करे तो परमात्मा मे आत्मा के समान गुण विकसित होने में तीनो लोको के समस्त मात्मगुणो के स्वामी होने में उनमे निभवन-प्रभुता है, तथा पचमहावनगाहा नामायिा गहण करना, इमलिए परम त्यागी होने से उनमे निर्गन्यता, परमाता का म्यम्प या परभावो का कार्य उनसे जान मे जलाते हा भी वे उनमा नेप आत्मा पर नहीं होने देते। तीसरा मग प्रभु के रिभुवन-प्रभुना ने एव निग्रंन्धना न रहित होने का है, जो वडा अटपटा है। फिर भी यह गगन है, क्योक्ति गि-यात्वीजीय प्रण को पूज्य नही मानते । गगरगरणादि गया उनके अष्टमहापातिहार्य आदि देख कर आपको त्यागी या निर्गन्ध (अपरिग्रही नहीं मानने, इमलिा चीतगग परमात्मा तीनो लोक के प्रभु नहीं रहे। तथा गिद्धि (मुक्ति प्राप्त नगी जीव समान हैं, वहां न कोई प्रभु है और न ही कोई उसया दाम | यहाँ पूज्च-यूजकभाव विलकुल नहीं है, इसलिए त्रिभुवनप्रभुना से परमात्मा रहिन है तथा प्रभु केवल मात्रु ना वेप धारण किए गदा नहीं फिन्ने, अपना प्रभु ने भी मे भी स्वगुण मे रमणतारुपी ममता है, इसलिए वे निगयता मे रहित भी है। इस प्रकार पूर्वोक्त तीनो विरोधी गुणो का प्रभु मे अन्नित्व है। उनकी सगति भलीभांति समझ लेने पर गुणो मे विरोध नहीं आता। तीसरी गुणविभगी है-योगी, भोगी, और योग-मांग-नहित । लोक व्यवहार मे देखा जाता है कि जो योगी है, वह भोगी नहीं न्द गकता । परपरमात्मा मे मन-वचन-काया को अपने वश मे रखने वाले योगी के नमस्त गुण है। व्यवहारदृष्टि मे वीतराग-अवस्या मे मन-वचन-काया के योगो ने युक्त (सयोगी केवली) है। निश्चयदृष्टि मे रत्ननयी की माधनाम्प योग मे मुक्त होने अथवा मोक्ष के गाथ जुड़े हुए होने मे या परमात्मा के गुणो या शुद्धस्वरूप के साथ युक्त होने से वे योगी हैं। तथापि दूसरी जोर वे भोगी भी हैं। इससे चोकिये नही। परमात्मा विलासी जैसे भोगी नहीं है। वे स्वात्मगुणो के भोगी है, जनुभनी है, अनुभव करते है। अथवा व्यवहारदृष्टि रो वे गोगान्तराय और उपमोगान्तराय कर्म का क्षय कर देने के कारण तीनो
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy