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________________ परस्परविरोधी गुणो से युक्त, परमात्मा २१७ हैं-शक्ति, व्यक्ति और शक्ति-व्यक्ति-रहित । वीतराग परमात्मा मे अनन्तशक्ति है, अनन्त-वीर्य के धनी परमात्मा अपना अनन्तवीर्य बता सकते हैं । मेरु को उठाना हो तो वे उसे उठा सकते है, भुजाओ से अथाह समुद्र को पार कर सकते है। अपने शुद्धस्वभाव एव स्व-गुण मे लीन रहने की अद्भुत शक्ति प्रभु मे है, यह प्रभु का आत्मिक गुण है। वैसे तो प्रत्येक आत्मा मे अनन्त शक्ति है, यह उसका स्वभाव है। परन्तु सामान्य आत्मा उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकती। परमात्मा मे गत्ति का पूर्ण व्यक्तीकरण होता है, परन्तु होता है, वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अलग-अलग गुणो का अलग-अलग । प्रभु मे वैसे तो जानादि मभी-शक्तियाँ पूर्णरूप में है, परन्तु वे चाहे तो एक-साथ उन सबकी अभिव्यक्ति कर सकते है । अथवा सासारिक लोगो की अपेक्षा परमात्मा का अलग व्यक्तित्व होने से परमात्मा उनसे विशिष्ट व्यक्ति है। परन्तु परमात्मा मे दोनो गुणो का एक साथ अस्तित्व होते हुए भी सिद्ध (मुक्त) दशा मे उनमे शक्ति होते हुए भी न होने जैसी है, क्योकि वह शक्ति कुछ कर नहीं सकती, वह अकरणवीर्य होती है । और सिद्धदशा मे अलग-अलग गुणो की अलगअलग अभिव्यक्ति (व्यक्ति) नही होती । अथवा परमात्मा ने शक्तित्व या व्यक्तित्व किसी इरादे से बताने का प्रयत्न नही किया, इसलिए उनमे ये तीनो गुण एक साथ रहने मे कोई विरोध नही है। दूसरी त्रिभगी मे भी तीन गुण हैं—त्रिभुवनप्रभुता, निर्ग्रन्थता और त्रिभुवनप्रभुता-निग्रन्थतारहित । यह बहुत ही आश्चर्यजनक लगता है कि परमात्मावीतराग मे तीनो लोको की पूज्यता-उनमे ३४ अतिशय और आठ महाप्रातिहार्यों के होने से तीनो भुवनो की प्रभुता (ऐश्वर्ययुक्तता) प्रत्यक्ष दिखाई देती है, तथापि स्वय निम्रन्थ होने से उनमे निर्ग्रन्थता है । उन्होंने ससार या सामारिक पदार्थो के साथ कोई लागलपेट, या ममत्वादि की गाँठ नही रखी, दुनिया मे उन्हे कुछ भी लेना-देना नहीं है, उन्हें न कोई वस्तु ईष्ट है, न अनिष्ट है । यही उनकी निर्ग्रन्यता है । यानी त्रिभुवन की वैभव-सम्पन्नता -प्रभुता के होते हुए भी उनमे अकिंचनता (अपरिग्रहवृत्ति) एव निर्लेपता (निर्ग्रन्यता) है। अथवा एक ओर इन्द्र, नरेन्द्र और चक्रवर्ती द्वारा पूजनीय होने से त्रिभुवनप्रभुता होते हुए भी स्वय निर्गन्थता गुण से परिपूर्ण है।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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