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________________ ર अध्यात्म-दर्शन उम निया के करते समय निपाग और निमाक्ष भान है, गुद्ध आत्मा को ही प्राप्त करने का लक्ष्य है तो उन उन शुद्धभावो में फाप उनले कर्ता को शुद्ध फन= कमों गे मुशित [मोसफल की प्राप्ति होगी। परमात्मपूजा के सम्बन्ध में भी यही बात सगजनी चाहिए। यद्यपि आध्यात्मिक माधक को फल की इच्छा नहीं होती, तथापि 'प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते' इस न्याय के अनुगार विना प्रयोजन के परमात्मपूजा की प्रवृत्ति भी कोई विचारवान गाधक कौन कर गयाना है? इन दृष्टि में परमात्मपूजा के प्रयोजन और उद्देश्य या कथन फन ते ग म श्रीआनन्दधनजी ने किया है । अत ग पनि के प्रयोजन गौर उद्देश्य के भा में ये दो पन्न म्पष्ट है। __ यदि पजाकर्ता परमात्मपूजा जंगी शुभ प्रवृत्ति के माय नादे-बाजी करता है, दूसरो को धोखा दे कर, वकमे गे माल कर अपने वो भवन ना परमात्मपूजक कहलाने का दिखावा करता है, या दम्म करता है, तो यह पूजा भी अणुभभावो के पारण अशुभफनदायिनी बनती है। यदि पूजाकना शुभभावो के साथ परमात्मपजा फरता है तो उसका जनन्तरफन पुण्यप्राप्ति के परिणामस्वरूप चित्तप्रसन्नता, और परम्परा गे मनुष्यगति था देवगति प्राप्त होती है। परन्तु यदि वह निष्काम एवं निष्कादा नाव मे अपनी आत्मशुद्धि, आत्महित या शुद्धात्मभाव या वीतरागभाव मे रमणना की दृष्टि से परमात्मपूजा करना है तो उसका अनन्तर फल आज्ञापालन और चित्त की गुद्धि [प्रसन्नना है, तथा परम्पगफल कामों से मुक्ति मोक्ष] है। ___वास्तव में, शास्त्रीय दृष्टि में भगवान् की आज्ञा माथव मे प्रवृत्ति करने की नहीं है। उनकी आना आव मे रहित सवर मे या गुद्धस्वरूप मे रमण करने-एकात निर्जरा [आत्मशुद्धि] या आईत्पदप्राप्ति की दृष्टि से कोई भी प्रवृत्ति करने की है। कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने बीतरागम्तुति मे कहा है- 'आपकी आज्ञा का परिपालन ही आपकी पूजा है।' यही वात श्री आवारागरन मे भी कही है.२ "श्रीतीयंकर देव ने मोक्षमाधना के १ 'तव सपर्यास्तवाज्ञापरिपालनम्'-अयोगव्यवच्छेदिका । २ आणाए मामग धम्म, एस उत्तर वादे इह माणवाणं वियाहिए। -~-आचा. थु. १ अ. ६ उ. २ .
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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