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________________ अध्याग-नगन मे नमन र उनकी पूजा करना । दुमग यार यह है पिरमात्मा के पद (नरण या चारित) को नमन करके बता जिस नाग्नि में विधिनाय प्रभु मोक्ष गए है, उस चारित्रवान् आत्मा को शुद्ध पद को नमन करके। निार्य यह है जितीयंकर भगवान न्यून पनीर केही स्थापित उनकी मूर्ति का मालम्बन ले कर उसमे परमात्मा का आरोपण करके 'मृति नी नहीं, मूनिमान-परमात्मा की पूजा कर रहा हग गायना गे उग गुग में जोर-शोर ने प्रचलित मूर्तिपूजा में आए ना विकाग को दूर करने और भावपूजा के लक्ष्य गे द्रव्यपूजा करने का श्रीआनन्दघनजी जग आध्यात्मिक और नि स्गृह सन ने विवेक किया हो, ऐगा प्रतीत होता है। इमी आशय को ले कर वे अगली गाया में कहते हैद्रव्यभाव शुचिभाव धरी ने, हरखे देहरे जइए रे । दह-तिग-पण अहिगम साचवता, एकमना धुरि यइए रे ।। मुविधि० ॥२॥ अर्थ द्रव्य से यानी बाह्यस्प से और भाव से यानी आन्तरिकरूप में शुद्ध--- (पवित्र-दोपरहित) भाव धारण करके (रख कर) हर्षपूर्वक देवालय (मन्दिर) मे जाएँ और द्रव्य-भाव दोनो प्रकार की पूजा करें । मन्दिर मे दश ग्रिकों और ५ अभिगमो का विधिपूर्वक पालन करते हुए मर्वप्रयम एकाग्रनित हो जाएं। द्रव्य और भाव से शुचितापूर्वक द्रव्यपूजा और भावपूजा इम गाथा मे श्री आनन्दधनजी द्रव्यपूजा और भावपूजा दोनो में शुचिभाव शुद्धभाव, दोपरहित भाव की अनिवार्यता बताते हैं । इस गाथा के दो अर्थ निकलते हैं । एक तो यह है कि द्रव्यपूजा मं द्रव्य मे और भाव से दोनो प्रकार मे गुचिता = शुद्धता रखी जाय । दूसरा अर्थ यह है कि द्रव्यपूजा और 'भावपूजा दोनो मे शुद्रभाव, दोपरहित भाव रखे जाय । १ श्री आनन्दघनजी स्वय नि म्ग्रह होते हए भी मूर्तिपूजक-परम्परा के मत ये । इसलिए उन्होंने अपनी परम्परा और धारणा के अनुसार द्रव्यपूजा का समर्थन किया है। यह उनका अपना मत है। उनके द्रव्यपूजा के इस मन से 'भाप्यकार का सहमत होना अनिवार्य नहीं है ।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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