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________________ ६ : श्रीसुविधिनाथ-जिन-स्तुति परमात्मा की भावपूजानुलक्षी द्रव्यपूजा (तर्ज-राग केदारो, एम धन्नो धणीने परचावे) सुविधिजिनेसर पाय नमी ने, शुभकरणी एम कीजे रे । अतिघणो उलट अंग धरी ने, प्रह उठी पूजीजे रे ॥ सुविधि ०॥१॥ अर्थ इस अवसर्पिणीकाल के नौवें तीर्थकर रागद्वषविजेता श्रीसुविधिनाथ (परमात्मा) के चरणो मे नमन करके पूण्य-उपार्जनरूप शुभक्रिया आगे बताई हुई विधि से करनी चाहिये । वह शुभ-क्रिया यह है कि हृदय मे अत्यन्त उमग (उत्साह) धारण करके सुबह उठ कर परमात्मापूजा करनी चाहिए। भाष्य परमात्मा की पूजा का रहस्य पूर्वस्तुति मे जैसे परमात्मा के मुखचन्द्र के दर्शन का रहस्य बताया गया या कि सच्चे माने मे अपनी आत्मा मे परमात्मभाव देखना ही परमात्ममुखदर्शन है, वैसे ही परमात्मा की पूजा भी सच्चे माने मे तो अपनी आत्मा को शुद्ध स्वभाव मे स्थिर रखना है । परन्तु यह आत्मा जब तक छमस्थ है, प्रमादी है, प्रमत्तसाधक-अवस्था मैं है, तब तक वह निरतर शुद्धस्वभाव मे स्थिर रह नहीं सकती, वह किसी न किसी वाह्य निमित्त का अवलम्बन ले कर शुद्धात्मभाव मे सदा के लिए स्थिर परमात्मा का स्मरण करना चाहती है और उनके आश्रय से अपने आत्मगुणो का स्मरण करती है । परन्तु यह ध्यान रहे कि आत्मजागृति या आत्मलक्ष्य के विना केवल वाह्यनिमित्त सुखप्रद नहीं होते। इसलिए परमात्मा की पूजा का अवलम्बन भी आत्मजागृति की दृष्टि से लेना आवश्यक बताया गया है। वीतराग-परमात्मा की भावपूजा या द्रव्यपूजा करने से उन्हे तो कोई लाभ T amgh memas-Par -
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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