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अध्यात्म-दर्शन
रागपरमात्मा की नरणमेवा (नवचा परमात्मपद का आगवन) रग्ना ही मच्चे माने में वन्दना है।
इसमे मागे की गाथागो में वन्दनीय परमात्मा के गुणानापन नामो वा उल्लेख करते हुए श्रीआनन्दघनजी रहते है-शिवशंकर जगदीश्वरः । परमात्मा शिव है। यानी व किमी प्रकार का गद्रव मनाने वाले या मसार मे प्रलय का ताण्डव करने वाले नहीं है, वे मच्चे जयों में शिव-निगद्रव है। अथवा कल्याणम्प है, या विश्वहिन करने वाले है। अथवा वे ज़मों के उपद्रव के निवारक है। वे किसी का महार करने वाले नहीं है, अपितु महार को रोक कर करयाण करने वाले हैं। परमात्मा कर है, यानी प्रतिदिन मुख के करने वाले आत्ममुखरूप है । परमात्मा स्वर्गलोक, मयंलोक और पाताललोक तीनो लोको मे ऊपर होने के कारण, अथवा तीनो लोकों में उनका आध्यात्मिक आदेश प्रचलित होने में वे जगदीश्वर है। उनका ऐश्वर्य भी ईश्वर के समान होने से वे सच्चे अर्थ में जगदीश्वर हैं। वे ज्ञानानन्दमय होने से चिदानन्द है । ममग्न ऐश्वर्य, धर्म, वैराग्य, यश, श्री, मोक्ष इन छह वातो रो परिपूर्ण होने के कारण वे भगवान् है । अथवा भव (जन्ममग्णरूप नमार) का अन्न दिया है, इसलिए भगवान हैं । राग, द्वेप, पाम, क्रोध, मोह, लोभ आदि पर विजय प्राप्त कर लेने के कारण वे जिन (विजेता) है, आपने कर्मशत्रुओ को दवा दिये है, यानी उन्हें जीन लिये है, इसलिए अरिहा (अरिहत) कहलाते हैं । धर्मतीर्थ (श्रमण-धमणी-श्रावक-श्राविकारप चतुर्विध मघ) की स्थापना करने के कारण आप तीर्थकर हैं। इसी प्रकार आप मुक्त (सिद्ध) हो जाने पर केवल शुद्ध चैतन्य (आत्मा) से मदा ज्योतिर्मय (प्रकाशित) होने से ज्योतिस्वरूप है । आत्मा-परमात्मा की तुलना धर्मोस्तिकायादि पाच द्रव्य नही कर सकते, इमलिए आप असमान हैं, अथवा दुनिया में परमात्मा के मिवाय कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसके साथ आपकी नमानता की जा सके, इसलिए आप (परमात्मा) अममान हैं, अनन्य हैं अथवा फारसी भाषा मे अस्मान आकाश को कहते है, अत आकाश की तरह परमात्मा ज्ञानरूप से व्यापक या अव्यक्त है।
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इसी तरह आप अलक्ष्य हैं, अर्थात् मन या बुद्धि से अगम्य हैं, वाणी से .