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________________ अनेक नामो से परमात्मा की वन्दना १५७ अनिर्वचनीय हैं, अक्षर से लिसे नहीं जा सकते, कोई भी अल्पज प्राणी आपको जान-देख या समज नही सका । आप सराार की मोहमाया से, कर्म, काया आदि में बिलकुल निर्लेप होने के कारण निरजन हैं। जो लोग यह मानते हैं कि ईश्वर निराकार होते हुए भी जगत् के दुखो को देख कर दुनिया मे पुन आ कर जन्म धारण करते है, इरा गत का इसमे खण्डन हो जाता है। क्योकि परमात्मा को निरजन-निराकार, अजर-अमर हो जाने के बाद पुन जन्म धारण करने या ससार के प्रपचो मे पड़ने की क्या आवश्यकता है? और जब उनके शरीर ही नहीं है, तव वे कैसे तो जन्म लेगे, कसे वाणी वोलेंगे, कैसे कोई कार्य करेंगे मत मुक्त अशरीरी परमात्मा निरजन होने से किसी भी सासारिक मोहमाया मे पडते नहीं। वे विश्ववत्सल भी है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे जगत् के प्रति किसी कामना, राग या मोह से प्रेरित हैं। समभावपूर्वक समस्तप्राणियो का निष्कारण परमहित उनसे होता रहता है । वे जगत् के एकान्त निष्कारण परमहितपी है, आत्मीय है, विश्वमित्र हैं । इसलिए जगत्वत्मल है । जगत् के माता-पिता समान है। साथ ही वे चार गतियो व चौरासी लक्ष जीवयोनियो मे वारवार भटकने के कारण थके हुए जीवो के लिए विश्रामस्थान है, आश्रयस्थान है, पापी से पापी जीव को भी उनके पास बैठने में कोई भय या खतरा नहीं है, बल्कि उनके पास बैठने से क्रूर प्राणी भी शान्त और सौम्य बन जाता है। इसलिए प्रभु समस्त जन्तुओ के लिए विश्रामरूप है तया क्रू रातिक र प्राणी परमात्मा के पास निर्भयतापूर्वक आ-जा व बैठ सकते है, इसलिए उनका सदा अभयदानदाता नाम भी मार्थ है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, बलवीर्य, सुख आदि आत्मा के अनुजीवी गुणो से परिपूर्ण होने के कारण परमात्मा पूरण हैं तथा प्रभु स्वय आत्मा मे ही स्थिर रहते हैं, आत्मा मे ही रमण करते हैं, इसलिए आत्माराम भी हैं। - इसके अतिरिक्त परमात्मा के और भी अनेको गुणनिप्पन्न नाम हैं। वे राग (मोह), मद (अष्टमद), सकल्पविकल्प, रति (रुचि), अरति (अरुचि), भय, शोक, निन्द्रा, तन्द्रा, (आलस्य), दुरवस्था आदि दोपो (जो कि छदमस्थ मे
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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