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अनेक नामों से परमात्मा को वन्दना
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छूट जाने का डर अथवा मेरा रोजगार-धधा चलेगा या नही, अथवा व्यवसाय नही चला तो क्या होगा? इस प्रकार की रातदिन चिन्ता करना (5) अपयशभय-अपनी या अपनो की अपकीर्ति, अपयश, बदनामी, वेइज्जती या अप्रतिष्ठा होने का डर । फला जगह लोग मेरा अपमान करेंगे या मेरे पर झूठा कल क लगा देंगे तो क्या होगा? इस प्रकार की चिन्ता । और (७) मरणभयअपने अथवा अपने माने हालोगो के प्राणो का वियोग हो जाने का डर। उसके मर जाने पर मेरा क्या हाल होगा? अथवा मेरे मर जाने पर मेरे परिवार आदि का क्या हाल होगा ? हाय ! मैं इतनी जल्दी मर जाऊँगा ? मुझे मौत न आ जाय ? इस प्रकार मृत्यु का नाम सुनते ही काप उठना । एक और प्रकार से भय तीन प्रकार के है-आध्यात्मिकभय, कर्मजन्यभय और भौतिक (पौद्गलिक) भय । निम्नलिखित मातों भय आध्यात्मिकभय के अन्तर्गत हैं-काम, क्रोध, मद हर्प, राग, द्वेप और मिथ्यात्व । ये आत्मा के साथ रह कर आत्मगुणो की हानि करने वाले हैं । कर्मजन्यमय शुभाशुभ कर्मों से उत्पन्न होते है । उपयुक्त (इहलोकभय आदि) सातो भय कमजन्यमय के अन्तर्गत है । भौतिकमय-ये भय पुद्गलो की विकृति के कारण जीवात्मा को होते हैं । ये भौतिक भय सात प्रकार के हैं-रोग, महामारी, वैर, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, स्वचक्रभय, और परचक्रभय । ये भय मोहनीयकर्म के उदय वालो को अत्यन्त भयभीत करते रहते हैं और उन्हे वास्तविक सुखों से वचित कर देते है। इनके निवारण के लिए वे विविध उपाय करते हैं, इन्द्र, चन्द्र, नरेन्द्र आदि की सेवा करते हैं, फिर भी ये उपाय उन्हे भयरहित नहीं बना सकते।
वीतराग-परमात्मा इन सभी भयो से रहित निर्भय होते हैं। उन्हे वडे से वडा भय भी विचलित नही कर सकता और न किसी प्रकार का भय उन्हे अपने स्वरूप से च्युत कर सकता है । बडे से वडे सकटो का सामना करने मे वे जरा भी नहीं घवराए । अपनी साधना के दौरान बड़े से बड़े विघ्न, परिपह या उपसर्ग आए, फिर भी वे तनिक भी नही डिगे।। ___ इसलिए श्रीआनन्दघनजी कहते है-भयाकुल आत्मा को पूर्ण निर्भय सुपार्श्वनाथ (वीतराग) परमात्मा की वन्दना और शरण ले कर भयरहित होना आवश्यक है । केवल शरीर और मस्तक को झुका लेना ही वन्दना नहीं है , किन्तु सावधान मन से अप्रमत्त हो कर मन-वचन-काया को एपान करके वीत