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अनेक नामों से परमात्मा की वन्दना
शोक, निद्रा, तन्द्रा (एक प्रकार के आलम्य), दुर्दशा (दुष्ट अवस्था) से बिलकुल रहित हैं। ___ आप पुरुषो मे उत्कृष्ट पुरुष है, उत्कृष्ट आत्मा है, परम ईश्वर है, सर्वोत्कृष्ट हैं, संसार के समस्त पदार्थों मे उत्तम पदार्थ है, परमेष्ठी (सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित) हैं, देवो मे उत्कृष्ट देव (देवाधिदेव) हैं, उच्च से उच्च सम्मान के योग्य है अथवा समस्त साधको के लिए प्रमाणस्वरूप है। ___ आप विधि (मोक्षमार्ग के विधाता) है, ब्रह्मा (आत्मगुणो की रचना करने वाले) हैं, विश्व के आत्मगुणपोषक अथवा विश्व मे व्याप्त विष्णु हैं, इन्द्रियो के वशीकर्ता हैं, तीनो लोको के रक्षक होने से नाथ है, पापनाशक हैं, पाप से मुक्त कराने वाले हैं, स्वामी (अपने आपके मालिक अथवा विश्व के स्वामी) है, मुक्तिरूपी परमपद को प्राप्त कराने मे सार्थवाह (साथी) है।
इस प्रकार आप अनेक नामो के धारक हैं, आपके गुणनिष्पन्न अनेक नाम है, जो स्वानुभव-स्वज्ञान से विचार करके जाने जा सकते हैं। इस तथ्य को जो जान लेता है (जो भव्यात्मा इस तरह से स्वरूप समझबूझ कर परमात्मवदन करता है) उन्हे वे आनन्द के समूह का अवतार (सच्चिदानन्दधनमय) बना देते हैं । इसलिए ऐसे परमात्मा की हम वन्दना-प्रणति-स्तुति-भक्ति करें।
भाष्य
वन्दनीय परमात्मा के अनेक गुणनिष्पन्न नाम इन गाथाओ मे श्रीआनन्दघनजी ने सप्तम जिनवर श्रीसुपार्श्वनाथ तीर्थकर की स्तुति के माध्यम मे परमात्म-वन्दना के सिलसिले में कौन-मे, किनकिन मुख्य गुणो वाले परमात्मा वन्दनीय हैं, इस सम्बन्ध मे उनके सार्थक नामो का उल्लेख किया है । ये सभी नाम गुण निष्पन्न हैं । इन कुछ परिगणित नामो के अतिरिक्त और भी अनेक नाम हो सकते है, यह भी उन्होने 'एम अनेक अभिधा धरे' कह कर बता दिया है । 'जिनसहस्रनाम' मे परमात्मा के हजार नामो का उल्लेख किया है . इसीलिए कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने वन्दनीय परमात्मा की पहिचान के लिए एक श्लोक में निर्देश कर दिया"जिस जिस समय (युग) मे, जो-जो, जिस किसी भी नाम से पुकारे जाते हो, ने एक ही है, उन गहापुरुष वीतराग भगवान् को नमन-वन्दन हो, बशर्ते कि