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अध्यात्म-दर्शन
वीतराग-मदकल्पना-रति-अरति-भय-सोग; ललना । निद्रा-तन्द्रा-दुरंदशा-रहित अबाधित योग ; ललना ॥
श्रीसुपाश्च० ॥५॥ परमपुरुष, परमातमा, परमेश्वर, परधान; ललना! परमपदारथ, परमेष्ठी, परमदेव, परमान; ललना ।।
श्रीसुपाश्व०॥६॥ विधि, विरंचि, विश्वम्भरू हृषीकेश, जगनाथ, ललना । अघहर, अधमोचन, धणी, मुक्ति-परमपद-साय; ललना।
घीसुपाय० ॥७॥ एम अनेक अभिधा धरे, अनुभवगम्य विचार; ललना । जे जाणे तेहने करे, 'आनन्दधन' अवतार; ललना ।। .
श्रीसुपार्श्व० ॥८॥
अर्य
यह सप्तम तीर्थ कर सात महाभयों का निवारण करने वाले हैं, इसलिए हे अन्तरात्मारूपीसखी ! अप्रमत्तमन से वीतरागपरमात्मा के चरणस्मल की सेवा करो, अयवा चित्त को एकाग्र करके सावधान हो कर उसमे वीतराग परमात्मपद का ध्यान करो। वीतरागपरमात्मा के नाम शिव (कल्याणकारी या उपद्रवरहित), शकर (सुखकर्ता), जगदीश्वर (जगत् के ईश्वर-पति), चिदानंद (अनंतज्ञान और आनंद से युक्त), भगवान् (सनग्न ज्ञान, ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, वैराग्य आदि से युक्त, जिन (राग-द्वेषादि के विजेता), अरिहा (कर्मशत्रुओ का विनाश करके वाले), तीर्थकर (धर्मतीर्थ-मंघ की न्यापना करने वाले), ज्योतिस्वरूप (आत्मज्योतिर्मय) एवं असमान (ससार में अद्वितीय-अप्रतिम हैं। ___ आप अलक्ष (बहिरात्मा द्वारा अगम्य), निरंजन कर्मों के लेप से रहित), वत्सल (प्राणिमात्र के प्रति निष्काम वात्सल्य रखने वाले), समन्त जीवो के लिए विधामरूप, अभयदानदाता, समग्ररूप मे पूर्णता को प्राप्त, और एकमात्र आत्मा मे ही रमण करने वाले है ।
आप राग, द्वेष, समन्त मदो, विकल्पो, प्रोति-अप्रोति (रचि-अरुचि), भय