________________
१४८
अध्यात्म-दर्शन
उपलब्धि आत्मादि की प्राप्ति होगी। मोनिका नादिनी उपाधि लिए दुनियादार लोग मनेगा व्यत्तिमा के पास गटात फिरने हैं, जो दि गाभवान है, तब फिर आत्मिक नटि के दादेष्टा, निर्देशना, दाना परमात्मा को वन्दना करने मे आपत्ति ही गया है ? गोकि बगर यह आन्मगति एक बार भी प्राप्त हो गई तो गाधक सदा के लिए अनन्तमान-वर्णन-गुरा-वीर्य को प्राप्त कर आत्गगमाधि में लीन हो जायगा।
दुगरी बात यह है कि परमात्मा अनन्तगुण और अनन्त-अक्षयनानादि गम्पत्ति लक्ष्मी की उपलब्धि के कारण है, इसलिए इनको वन्दन करने में माधक अपने आपका अन्तदर्शन कर सकेगा । अपनी आत्मा पर मनन-चिन्तन कर सकेगा कि वह जिनको वन्दन कर रहा है, वे परमात्मा तो उग अनन्तअव्याबाध गुप के धनी बने हुए है, और वह अभी तक वैषयित सुखों को, अथवा वस्तुनिष्ठ सुख को ही मुख मानता रहा । परिणामस्वरप उग धणिक सुखाभास के चक्कर में पट कर उसने अनन्त-अनन्त जन्ग खो दिए, अनेक जन्मगरण के दुख और उन उन जन्मो मे होने वाले अनेकानेर दुग लाचारी में सहे, अव सभल जा, और अनन्तसुखी परमात्मा की वन्दना के माध्यम से उसे अपनी आत्मा में निहित उस अनन्त बाधीन-सुख के राजाने को प्राप्त करना है। उसके लिए तुझे ज्ञान-दर्शन-चारित्रम्प रन्नत्रय की [जयवा निश्चयदृष्टि से स्वस्परमणस्प चारित्र की आराधना करनी लाजिमी है, उसके लिए जो मुखबीजरूप दुख-क्षणिक दुख पूर्वकर्मों के फलस्वरूप गहने पड़े, उन्हें समभाव से सह कर असातावेदनीय कर्म के जाल को बाट दे, और परमात्मवन्दना के द्वारा जानादि अक्षय सम्पत्ति को प्राप्त करना है। इसीलिए परमात्मवन्दना का दूसरा कारण श्रीआनन्दघनजी बतलाते है---'सुख-सम्पत्तिनो हेतु ।'
परमात्म-बन्दना का एक तीसरा कारण और है, वह हैशान्तस्वरूपमय शान्तसुधारस को प्राप्त करना । अव तक आत्मा अपने को भूल कर नदी, पर्वत, गुफा, जंगल, तीर्थस्थान, या परिवार, सतान, स्त्री, विपयवासना या भौतिक पदार्थो की प्राप्ति मे शाति मान रहा था, वह अपने शुद्धस्वरूप के आसपास जलती हुई क्रोध, मान, माया, लोभ, मद, मोह, मत्सर रूपी कपायाग्नि को नहीं देख रहा था, परन्तु परमात्म-वन्दना के समयवन्दनीय परमात्मा का रूप देख कर अन्तरात्मा मे अवश्य ही विचार करेगा कि