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________________ आत्मा और परमात्मा के बीच अतर-भंग कारणो में होता है, और कर्ममोक्ष भी किन्ही कारणो से । सामान्यरूप से कर्म बन्धन के मुख्यतया ५ कारण शाम्ब मे बताये हैं- १मिथ्यात्व, अविरनि, प्रसाद, पाय और योग । इन्ही पांचो कारणो को आश्रव कहा गया है। और इन्ही कारणो मे मुक्त होने पर आत्मा कर्मों से मुक्त होती है । कर्म मुक्त होने के भी ६ कारण बताये है-५ समिति, ३ गुप्ति १० श्रमणधर्म, २२ परीपहजय, तथा चारित्र-पालन एव १२ प्रकार के तप । इन्हें ही एक शब्द मे मवर कहा गया है। आश्रव और सवर हेय-उपादेय क्यो ? इन दोनो मे आथव त्याय है । यद्यपि कई लोग व्यवहारनय की दृष्टि से ऐसा मान लेते हैं कि शुभ-आश्रव (पुण्य) कञ्चित् उपादेय है, जब तक कर्मों से सर्वथा मुक्ति न हो, तब तक उसे छोडा नही जा सकता, छोडना नही चाहिए । परन्तु निश्चयनय की दृष्टि में यह बात वास्तविक नही जचती है । निश्चयनय की भापा मे यो कहा जा सकता है कि शुभाश्रव (पुण्य) छोडने योग्य ही है। कर्मों से सर्वथा मुक्त होने पर उसे छोडना नही पडता, वह म्वय छूट जाता है। इसी प्रकार शुभकर्मो को ग्रहण करना नहीं पडता, और न ही आत्मा अपने गुणस्वभावो के मिवाय किमी को खीचता है । शुभकर्मो को लाचारी से छोड नही मके, यह अलग बात है। क्योकि अशुभ आश्रव (पाप) से तो सदैव बचना चाहिए । इसलिए अशुभकर्मो (आश्रवो) को छोडने या उनमे बचने के लिए मुख्यतया शुद्ध भावो (म्वगुणम्वभाव) मे प्रवृति हो, अगर शुद्धभावो मे सतत प्रवृत्त न रह सके तो कम से कम शुभभावो (शुभाश्रवो) मे तो प्रवृत्त रहना उचित है । इमी दृष्टि को ले कर व्यवहारदृष्टि से शुभाश्रव कथञ्चित् उपादेय माना जाता है, किन्तु मुमुक्षु के लिए हे वह हेय ही। क्योकि उससे कर्म मुक्ति तो होती नही, कर्मवन्धन ही होता हे, जन्म-मरण की परम्परा ही वढती है । इसी प्रकार कर्ममुक्ति के जो कारण बताये गए हैं, या सम्यग्दर्शन, सम्यग्, ज्ञान, और सम्यक्चारित्र को जो मोक्ष के कारण वताये गये है, वे व्यवहारनय १ मिथ्यात्वाविरति-प्रमाद-कषाययोगा बन्धहेतव । स आश्रव. । २- स समिति-गुप्ति-धर्मानुपेक्षा-परिषहजय-चारित्रः, तपसा निर्जरा च ॥ -तत्वार्थसूत्र
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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