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________________ अध्याग-दन लिप्त-कमों से मयुक्त है, तब वह यह गनारी, गिन्न या गुन, नहीं । अन, यदि आत्मा ने परमात्मा नफा अन्नर दूर करना हो तो कर्मों में नबंधा मुक्त शुद्ध, और स्यम्पनिठ होना गावक? । नभी वह गगार्गमिट पर सिद्ध (मुक्त) कहलाएगा । फिर उसने जगमरण का चन भी मिट जाएगा । यहाँ फिर एक नवाल पैदा होता है कि यह नो गमत मे आ गया नाम आदि अन्य के नाप जब तम आत्मा का मयोग है, तब तक वह बन्धन में मुक्त नही हो गगनी. परन्तु पृथक पृथक कर्मों के गाय गयोगाम्बव गे सम्बद्ध करने वाला पानी कमों का वर्गीकरण (Ciassification) करने वाला कोन है जिसमे उनके फल मे अन्तर पर जाना है और क्या उन कर्मों के साथ मयोग होने में आत्मा यो रोका जा सरता है ? यदि रोका जा सकता है तो मे ? और शिमके द्वारा? इन सबके समाधान हेतु अगली गाथा अन्तुत है.. कारण जोगे हो बांधे बंधने रे, कारणे मुगति मुकाय । आश्रव-संवर नाम अनुक्रमे रे, हेय-उपादेय गणाय ।। पद्मप्रभजिन ० ॥४॥ अर्थ अमुक-अमुक कारणो के मिलने पर अमुक-अमुक कमों का बन्ध होता है, अमुक-अमुक करणो के मिलने पर कर्मों से मुक्त हो कर यात्मा मुक्त भी हो सकती है । आत्मा जव कर्मवन्धन करती है, तव कर्मो के उक्त प्रवाह के आगमन को आश्रव और नये कमों के निरोध (रोकने) को संवर कहते हैं, जो क्रमशः हेय और उपादेय कहलाते हैं। भाप्य कारणो से बध और कारणो से मोक्ष आत्मा और परमात्मा के बीच में दुई डालने वाले कर्म है, यह बात निश्चित हो जाने पर सवाल उठना है कि कर्म किन-किन कारणों से बंधने हैं, और किन कारणो मे छूटते है ? पहले मभवदेव परमात्मा की स्तुति में स्पष्ट बताया जा चुका है कि कोई भी कर्म विना कारण के कदापि सम्भव नहीं है। . कर्ता द्वारा कार्य होगा तो उनके कारण होंगे ही । प्रत्येक कार्य मे कई कारण होते है। यहाँ यह भी विताना अभीष्ट है कि नर्मवन्धनरूप कार्य भी किन्ही
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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