SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ अध्यात्म-दर्शन पर खडी हो, मुझे मारणान्तिका पाट भी क्यों न गहना पटे, चाहे मेरी मृत्यु ही मामने खडी हो, अथवा चाहे मुझे कई जीवन वयो न धारण करने पहें, गुणों इसका कोई रज नरी, न मुझे जिंदगी या गीत की प्याग है. जिदगी रहे. या जाय, मौत भले ही आज ही जा जाय, मुझे इन पर कोई नहीं आनी , न मुझे जिदगी मे मोह होगा, और न ही मृत्यू में नगन्न । अगर प्रा . गम्यग्दर्शन की उपलब्धि होनी हो ना मै हजार जिंदगियां न्यौछावर करने को नकार है। यह हुआ उन पक्ति का एक अर्थ, जो अधिक गगन बनना। इसका दूगग अयं उग प्रकार भी किया गया है कि अगर वीनगगप्रभु के दर्शन का मेरा कार्य सिद्ध हो जाय तो मुझे फिर उनने जन्म-मरण के वान नहीं रहेगे। यानी मेरे जन्म-मरण के काट कम हो जायेंगे, क्योकि सम्यग्दर्शन प्राप्त होने पर (ममार-जन्ममरण पा चन) परित्त (गीमित) हो जाता है। पहले अर्थ में श्रीआनन्दघनजी की मम्यग्दर्शन-प्राप्ति की तीन तमन्ना, अपूर्व उत्सर्गभावना प्रगट होती है, उसके निए ये जीवन-मरण को बाजी लगाने को तैयार हो जाते है। जिन प्रकार धन या वहुमू य रत्न आदि की प्राप्ति के लिए मनुप्य अनेक प्रकार के यप्ट सह्न करने को तैयार हो जाता है, इतना ही नहीं, अपनी जान हथेली पर रन कर, या गोताखोरो की तरह मरजीवा वन कर अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न करता है, वैसे ही श्रीआनन्दघनजी भी मानो दर्शनपिपानु लोगो को दर्शनप्राप्ति का उपाय बताते हुए कहते है -भव्य जीवो | परमात्मदेव (शुद्ध आत्मदेव) के दर्शन की प्राप्ति के लिए जीवन और मरण पी परवाह मत करो, तन, मन, धन, माधन सभी वस्तुएँ इस पर फना कर दो, इसके लिए जो भी कप्ट आएँ, सहने को तैयार रहो। दूसरे मय के अनुसार श्रीआनन्दधनजी दर्शनकार्यकी सिद्धि या फल बताते है, कि अगर दर्शनकार्य सिद्ध हो जायगा तो जन्म-मरण का त्रास नहीं रहेगा, अपार जन्म-मरण का वह कष्ट मिट जायगा या कम हो जायगा। दुर्लभ दर्शन--कृपा से सुलभ पूर्वोक्त गाथाओ द्वारा श्रीमानन्दधनजो दर्शन की दुर्लभता का विभिन्न पहलुओ से प्रतिपादन कर चुके। दर्शनप्राप्ति के मार्ग में कितनी अडचने हैं ? -र्णनप्राप्ति के लिए व्यवहारिक, मानसिक, आध्यात्मिक आदि दृष्टियों से पीन
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy