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________________ करता है और ससार-सागर को पार करके शाश्यत-धाम की ओर प्रयाण करने का सत्त्व और सामर्थ्य प्राप्त करता है। यहां निर्दिष्ट अनेक अभिधान (नाम) परमात्मा के अलौकिका, विशिष्ट गुणो का सुन्दर परिचय देते हैं, उनके अद्वितीय, अनुपम, अमाधारण एव सर्वोत्कृष्ट व्यक्तित्व की तनिक झलक प्रस्तुत करते हैं । अन्यया पूर्ण गुणी एव पूर्ण ज्ञानी परमेश्वर परमात्मा की गुण-गरिमा का उचित वर्णन करना अथवा उनकी पूर्णता का यथार्थ परिचय देना अपने समान पामर एव अल्पज्ञ व्यक्ति के लिये सर्वथा असम्भव बात है। कहा भी है कि-पूर्ण गुणी को पूर्ण गुणी ही जान सकता है, पूर्ण ज्ञानी को पूर्ण ज्ञानी ही पहचान सकता है। छोटे चम्मच से सागर का अगाध जल उलीचना अथवा छोटी पटरी से अनन्त श्राकाश को नापना जितना हास्यास्पद और असभव कार्य है उतना ही असभव एव हास्यास्पद कार्य इस छोटी सी जिह्वा से अयवा स्याही-कलम से पूर्ण गुणी एव पूर्ण ज्ञानी परमात्मा के गुणो का वर्णन करना है, फिर भी "शुभे यथाशक्ति यतितव्यम्" के अनुसार परमात्मा के गुणो का, उनके पवित्र नामो का यथाशक्ति वर्णन करके हम अपना तन, मन और जीवन धन्य करें, कृतार्थ करें। "अल्पश्रुत श्रुतवता परिहामधाम" इस पक्ति के द्वारा पूर्वकालीन शास्त्रकार महपियो ने भी अपनी इस अल्पज्ञता को स्वीकार किया है, फिर स्वीकार करके भी वे रुके नही है"त्वद् भक्तिरेव मुखरी कुरुते बलान्माम्" गाकर परमात्मा की भक्ति की प्रशसा की है और यह भक्ति ही आज मुझे आपका गुणगान करने के लिये प्रेरित कर रही है-इस प्रकार की कृतज्ञता से वे भी परमात्मा के गुणो की स्तवना करते रहे हैं। , यह बात पूर्णतः सत्य है । परम गुणवान परमात्मा के गुणो का वर्णन करने की जो भी शक्ति आज हमारे जीवन मे जागृत हुई है वह भी उस परम १०६ मिले मन भीतर भगवान,
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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