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________________ दयालू परमात्मा की कृपा के प्रभाव से ही जागृत हुई है । अत उस शक्ति का उपयोग उसे परम दयालु प्रभु के गुणो की महिमा गाने और उसके नामो की स्तवर्ना करने मे करें वही न्यायोचित होगा। प्रतः उन परमात्मा की कृपा से यहां उनके विशिष्टतम गुण प्रदर्शित करने वाले उनके विविध नाम एव उनके अर्थ प्रस्तुत कर सका हूँ। उन पर चिन्तन-मनन करने से परमात्मा की लोकोत्तमता का रोमाबक स्पर्श होता है और पूर्ण गुणवान परमात्मा के प्रति श्रद्धा, भक्ति, सम्मान एव सत्कार मे अत्यस वृद्धि होती है। समस्त साधक पूर्ण गुणवान श्री अरिहन्त परमात्मा की पूर्ण भक्ति करके पूर्णत्व प्राप्त करके दुस्तर ससार को पार करके परम-पद को प्राप्त करें। श्री अरिहन्त परमात्मा के विविध नाम परमात्मा, परमेश्वर, परम परमेष्ठि, परमयोगी, परम ज्योतिस्वरूप, परमदेव, परम पुरुष, परम पदार्थ, प्रधान, प्रमाण, पर-मान, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुष वर पुण्डरिक, पुरुष वर गेंध हस्ती, परमाप्त, परम कारुणिक, जिन, जिनेश्वर, जगदानन्द, जगत्-पिता, जगदीश्वर, जगदेवाधिदेव, जगन्नाथ, जगच्चक्षु, जिष्णु, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहित-चिन्तक, लोक-प्रदीप, लोकप्रद्योतकारी, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, स्याद्वादी, सर्व तीर्थोपनिषद्, सर्व पाखण्डमोची, सर्व योग-रहस्य, सर्व प्रद, सर्व लब्धि-सम्पन्न, सौम्य; सर्व शक्त, सर्व देवमय, सर्व ध्यानमय, सर्व ज्ञानमय, सर्व तेजोमय, सर्व मत्रमय, सर्व रहस्यमय । निरामय, नि सग, नि.शक, निर्भय, निस्तरग, निष्कलक, निरजन । अभय-दाता, दृष्टि-दाता, मुक्ति-दाता, मार्ग-दाता, वोधि-दांता, शरणदाता, धर्म-दाता, धर्म-देशक, धर्म-नायक, धर्म-सारथी, हृषिकेश, अजर, अमर, अजेय, अचल प्रत्यय, महादेघ, शकर, शिव, महेश्वर, महाव्रती, महा योगी, महात्मा, मृत्युजय, मुक्ति-स्वरूप, मुक्तीश्वर । मिले मन भीतर भगवान १०७
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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