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इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ के ये चार स्वरूप होते हैं और इन चारों स्व पो के द्वारा विश्व के प्राणी उस पदार्थ को अपने उपयोग मे लेकर इष्ट कार्य की सिद्धि करते हैं।
विश्व के सामान्य व्यावहारिक जीवन मे जिस प्रकार पदार्थ एव उसके नाम आदि स्वत्प को अभेद के रूप मे मानकर उसके द्वारा व्यावहारिक कार्य पूर्ण किये जाते हैं, उसी प्रकार से प्राध्यात्मिक जीवन मे प्रवेश एव प्रगति : करने के लिए आध्यात्मिक तत्त्व एव उसके नाम आदि स्वरूप को अभेद के रूप मे मानकर उसकी शास्त्रोक्त विधि के अनुसार यदि उपासना की जाये तो आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर चलने और अग्रसर होने मे साधक को अत्यन्त सरलता होती है।
भक्तियोग एक ऐसा योग है जिसमे परमात्मा विषयक सच्ची खोज मे भक्तात्मा एकाकार हो जाता है ।
___ भक्ति को सघन करने के लिए परमानन्दमय परमात्मा को अपना आत्मेश्वर बनाकर उनके साथ गुप्त सगोष्ठी करने मे, तन्मयता अनुभव करने मे, तदाकार वृत्ति मे चित्त को ढालने मे, उनके नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीनो निक्षेप भी अनन्य उपकारी उनके चौथे भाव-निक्षेप के समान ही आदरणीय एव प्राराध्य हैं ।
इन तीनो निक्षेपो को हृदय मे स्थान देने से, उन्हें हृदय मे स्थायी करने से समस्त प्रकार के कल्याण सिद्ध होते हैं, भाव निक्षेप स्वरूप श्री अरिहन्त परमात्मा का यथार्थ आदर होता है, और हृदय के भावोल्लात मे वृद्धि होती है।
___ श्री अरिहन्त परमात्मा विषयक भाव, भव-वृद्धि कारक अशुभ भावो एव अशुभ कर्मों का क्षय करते हैं ।
अत स्व-पर के हितैषी को श्री अरिहन्त परमात्मा के समस्त निक्षेपों. की उपासना अत्यन्त उपयोगी प्रतीत होती है ।
मिले मन भीतर भगवान
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