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___९६१ स्मरण कला
भूलस
इस वर्गीकरण से यह समझा जाता है कि(१) बम्बई मे अन्य किसी मोहल्ले की खोज किये बिना सिर्फ
भूलेश्वर की ही खोज करनी । (२) भूलेश्वर में भी तीसरे भोइवाडा मे ही जाना । (३) तीसरे भोइवाडे मे भी दूसरे किसी मकान मे न जाकर,स्वामी
नारायण भवन में ही जाना । (४) स्वामी नारायण भवन मे भी अन्य किसी मजिलो में न भटक
__कर सीधा चौथी मजिल में चढना । (५) चौथी मंजिल मे भी जहाँ ६५ न. लिखे है वहाँ पहुँचना । (६) यहां ही उस व्यक्ति का पता लगेगा।
इस प्रकार उतरते क्रम का अनुकरण करने से निर्धारित मनुष्य को खोज निकालने में बहुत ही सरलता हो गई अथवा यह कहा जा सकता है कि जो कार्य लगभग अशक्य जैसा था वह शक्य बन सका।
एक दूसरे उदाहरण से भी यह बात समझलो ।
एक पुस्तकालय मे १०००० पुस्तकें है। अब इन पुस्तकों के यदि सिर्फ क्रमांक लगे हों, तो कोई भी पुस्तक को खोजते कितना समय लगे? उदाहरण के तौर पर तुम्हें उनमे से छत्रपति शिवाजी का जीवन चरित्र देखना हो तो सूचि-पुस्तिका के पृष्ठो पर पृष्ठ उलटने पड़े । इनमें किसी भी प्रकार की कोई दूसरी व्यवस्था न हो, तो समस्त नाम क्रमश: बाँचने पडे और वे पुस्तकें भी यदि सीधे खाने में लिखी हा तो नाक में दम ही आ जाए, पर इस पुस्तकालय में यदि पुस्तकों का वर्गीकरण किया हुआ हो और उसमे भी विभाग किए हुए हों तथा उनकी भी अनुक्रमणिका या प्रकारादि अनुक्रम बनाया हुआ हो तो वह पुस्तक तुम एक ही मिनट मे खोज सकते हो । उसके लिए तुम्हे मूचि-पुस्तिका का प्रथम पत्र देखकर इतना ही जान लेना है कि जीवन-चरित्रो की सूचि कौन से पन्ने मे है ? उसके बाद उस पन्ने को उलट कर उसमे इतना ही देखना है कि ऐतिहासिक जीवन चरित्र कौन से पन्ने मे है ? उसके बाद ऐतिहासिक पुरुषो के जीवन चरित्र की अकारादि अनुक्रमणिका देखनी है बस इतने मे तुरन्त छत्रपति शिवाजी को पुस्तक हाथ लग जाएगी।