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________________ स्मरण कला ९७ जिन ऑफिसो मे प्रतिदिन सैकडों पत्र प्राते है, वे क्या करते हैं ? पत्रो के विभाग करते हैं, उनमे भी विषय-विभाग करते है और उनकी फाइले रखते हैं कि जिनमे अकारादि अनुक्रम होता है। इससे ही तीन महीने पहले आया हुअा पत्र खोजा जा सकता है और बारह महीने पहले आया पत्र भी पाया जा सकता है। यदि ऐसी व्यवस्था न हो तो कोई कागज हाथ ही न लगे और उसके अभाव मे व्यापार-कार्य भी अशक्य हो जाए। हमारे मन की व्यवस्था भी इसी प्रकार की है। उसमे स्पर्श, रस, गन्ध, रूप, शब्द आदि के लाखो-करोडो सस्कार भरे हुए है। फिर भी विचार करते हो उनमे से अमुक ही विचार थोडी देर मे बराबर निकल पाता है । आज से पच्चीस वर्ष पूर्व घटी एक घटना या चालीस वर्ष पहले बना बनाव भी बरावर याद आ जाता है। उनमे यह वर्गीकरण ही आधारभूत है, जिसका कि सामान्य मनुष्यो को ख्याल नही पाता है, परन्तु जो अपने विचारो का पृथक्करण थोड़े बहुत अश मे कर सकते हैं, वे इस विषय को बराबर समझ सकेगे। मैं मानता हूँ कि इतने विवेचन से वर्गीकरण का तात्पर्य तुम बरावर समझ गये हो । मंगलाकांक्षी धी० मनन स्मरण-कला, वर्ग-वर्गीकरण, उदाहरण, समान विभाग, चढता क्रम, उतरता क्रम, व्यवस्था और त्वरा के लिए उनकी अति उपयोगिता ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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