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________________ प्रथम खण्ड पावन चरणो से वंग-विहार प्रांत | ५१ जिसमे जैन मुनि श्री प्रतापमल जी महाराज और मुनिश्री हीरालाल जी महाराज के मद्य-मांस निषेध पर प्रभावशाली भापण हुए। जिसको सारी सभा ने मान लिया और महाराज-महात्मा जी को हमारी सभा कोटिश धन्यवाद अर्पण करती है सहीमुकाम-सूर्यकुड मास्टर बुधनसिह गहलोत पोस्ट-वरकट्ठा प्रेमचन्द सिंह-अध्यक्ष थाना-वरही जिला-हजारी वाग झरिया नगर की झांकीक्रमश मार्ग मजिल को पार करते हुए एक प्राचीन ऐतिहासिक जैन जगत सुविख्यात सम्मेदशिखर शैलावलोकन करते हुए सन्त प्रवर झरिया नगर के सन्निकट पधारे । झरिया शहर व्यापार और विद्या मे विकासोन्मुखी केन्द्र रहा है । अन्य नगरो की तरह यह भी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है । भूमिगत यहाँ से लाखो टन कोयले प्रतिदिन देश के कोने कोने मे निर्यात होते हैं । इस कारण कोयलो का घर माना गया है। भौगोलिक दृष्टि से और मेरी पावन दीक्षा-स्थली होने के कारण धार्मिक दृष्टि से भी इस नन्हे नगर का बहुत महत्त्व है, इसमे आश्चर्य ही क्या ? सर्व प्रकार की सुविधासुगमता के कारण काफी गुजराती जैन परिवार वसे हुए हैं। जिनका सुवलिष्ठ सुगठित अपनी शानी का अनुपम श्री श्वेताम्बर स्थानकवामी जनसघ बना हुआ है और सघ-विकास की बागडोर कर्मठ एव श्रद्धालु कार्यकर्ताओ के कमनीय कर-कमलो मे प्रगतिशील हो रही है। ___मुनियो के शुभागमन की सूचना पाते ही जन-जन मे आनन्दोल्लास का स्रोत उमड पडा । चूकि मार्गीय कठिनाइयो की वजह से विहार प्रात मे स्थानकवासी मुनियो का पदार्पण दुर्लभ ही हुआ करता है। इसलिए मैकडो शताब्दियो से तिरोहित उस पवित्र परम्परा का प्रवाह पुन गतिमान हो उठा । सकडो भावक मडली ने आपके हार्दिक स्वागत समारोह में भाग लिया। मानो जैन धर्म की लुप्न-गुप्त शाखा की जगमगाती ज्योति पुन जाग उठी हो। इस प्रकार जय-विजय नारो से अनन्त आकाश गूंज उठा। काफी दिनो तक मुनिप्रवर विराजे, पर्व सा ठाठ-बाट रहा । दिनो दिन जनता की अभिवृद्धि होती रही। संघ के विकास मे सघ के सदस्यो को नवीन मार्ग दर्शन मिला । कई जाहिर प्रवचनो से वहाँ के नागरिक काफी लाभान्वित भी हुए। इन्ही दिनो कलकत्ता का वृहद् संघ, जिसमे सयुत्त सघ के मुख्य. मुख्य श्रावक मडली मवत् २०१० के चातुर्मास की विनती पत्र लेकर झरिया उपस्थित हुए और इधर झरिया सघ का भी अत्याग्रह था। परन्तु परोपकारी मुनियो को अति विवश होकर कलकत्ता श्री सघ को ही वर्षावास की मज्री फरमानी पडी। वस, अविलम्ब रानीगज, आसनसोल मे रहे हुए जैन परिवारो को लाभान्विन करते हुए वर्धमान नगर को पावन किया। भमहावीर की तपोभूमि वर्धमान'वर्धमान' इस शब्द मे एक प्राचीन परम्परा-इतिहास का समावेश है। आचाराग सूत्र मे भी स्पष्ट प्रमाण है कि-~-यह प्रदेश भ० महावीर की तपोभूमि एवं पवित्र बिहार स्थली रही है। जिन्होंने इस प्रदेश मे लगभग बारह वर्ष तक कठोराति कठोर तप तपा था । एतदर्थ सूत्र मे इस प्रदेश को "लाद"
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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