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________________ ५० | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य मडली मम्मेद शिखर अर्थात् पार्श्वनाथ हिल्स होती हुई कलकत्ता तक जायगी।" मुनिवरो द्वारा तव यह मरल ममाधान पाते ही–वे पृच्छकगण वहुत ही प्रभावित होते । लम्बे के लम्बे मुनि चरणो मे ज्यो के त्यो नो जाते और उठकर यही वोलते कि-"आप तो हमारे देश के गुरु हैं । क्योकि भ० पार्श्वनाथ और भ० महावीर स्वामो तो हमारे देश मे ही हुए हैं। इसलिए आप हमारे गुरु और हम आपके शिष्य हैं । हमे शुभाशीर्वाद प्रदान करें और आज हमारे गाव मे रुक वर हमे सन्तवाणी एव भोजन मेवा का लाभ प्रदान करें।" भक्ति का दिग्दर्शनहम बहुत दिनो से केवल इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठो पर लिखित अक्षरो को ही पढते व मुनते थे कि-जन भिक्षु रात्रि मे न खाते, न पीते हैं, न पैरो मे जूतियां व चलने-फिरने मे न किमी तरह की सवारो का उपयोग ही करते हैं । पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी, सदाचारी, सुविचारी, क्षमा के धनी एव जीवदया हित सदैव मुखपर मुख-वस्त्रिका वाधे रहते हैं ।" किन्तु इन जीती जागती, चलती-फिरतीमधुर भापी सौम्य सुन्दर विभूतियो के दर्शन तो हमे गुरुजी | आज ही हुए हैं। इस प्रकार यत्र-तत्र जनता की भारी भीड विस्मृत सस्कृति का पुन -पुन स्मरण कर भक्ति भाव मे विभोर हो उठती थी। मानो काफी अर्से के परिचित हो, ऐसे जान पड़ रहे थे। सचमुच ही सच्ची मानवता के दर्शन इन विहार वामियो के जीवन से हो रहे थे। विना कहे कहलाये ही अपने आप समझदार जनता कही पाठशालाओ मे तो कही मन्दिर मठो मे व्यात्न्यानो का अनुपम आयोजन करती चली जा रही थी, इस प्रकार सैकडो विहार-निवासी मुनियो के सम्पर्क मे आए। अनेको ने हिंसा-मद्य-मास का उपयोग न करने की प्रतिज्ञा स्वीकार की एव अनेको ने विस्मृत जैनधर्म के मौलिक जीवनोपयोगी सिद्धान्तो को पुन स्वीकारा। उपदेशों का असरकई दिनो के पश्चात् मुनिमडल ने मार्ग मे सड़क के किनारे पर उवलते हुए जल से भरा एक कुण्ड देखा उसका नाम सूर्यकु ड था। इसी सूर्यकुण्ड पर सयोगवश गहलोत राजपूतो की एक जातिमुधार मभा हो रही थी। इस समा मे अनेक सज्जनो के सुधार विपयक जोशीले भापण हो रहे थे। अचानक मुनिवृन्द भी वहां जा पहुचा । उपस्थित जन समूह के अत्याग्रह पर मुनियो ने भी अपने भाषण दिये सीने मग्ल हृदय-सी उपदेशो मे मुनि मडल ने कहा कि-समाज-सुधार तभी सभव है, जब आप सभी मद्य-मामादि मप्त व्यसनो का त्याग करदे । तभी आप के समाज की उन्नति हो सकती है और तभी आप का स्तर ऊंच, उठ सकता है केवल लच्छेदार-भापणो से नही । समय का ही प्रभाव था किउन तामनी प्रवत्ति वाले पुरुपो की भी बुद्धि पलट गई और वे एक स्वर से बोल उठे "हमे स्वीकार है। हमे स्वीकार है। तवाल लगभग पाचनौ से अधिक उपस्थित मज्जनो ने मद्य-मासादि का त्याग कर दिया एव नम्मिलित रूप में एक लिखित प्रतिज्ञा पत्र मुनिवृन्द के चारु-चरणो मे समर्पित किया। वह निम्न पत्तियों में इन प्रकार है प्रतिज्ञा-पत्रआज ता० ३०-४-५३ को हमारी गहलोत राजपूतो की जानि सुधार की विशाल सभा हुई ।।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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