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________________ पावन चरणों से वंग-विहार प्रांत इस प्रकार झरिया सघ का भक्तिभरा डेप्युटेशन (प्रतिनिधि मडल) एव विहार प्रान्त मे विराजित वयोवृद्ध तपस्वी श्री जगजीवन जी म०, ५० रत्न श्री जयतिलाल जी म० एव गिरीश मुनिजी म० को बलवन्ती प्रेरणा से छहो मुनिवरो ने वनारम नगर से विहार प्रान्त की ओर प्रस्थान किया । जैन परिवारो की अल्पना के कारण मार्गवर्ती कठिनाइयो का आना स्वाभाविक ही था। तथापि "मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु ख न च सुखम्" तदनुसार परोपकारी मुनि वृन्द भी भावी उपकार की दीर्घ दृष्टि को आगे रखकर खान-पान सम्बन्धित आने वाली अनेक कठिनाइयो की कुछ भी परवाह न फरते हुए धीर-वीर एव भावी परिपहो के प्रति वज्रवत् वनकर मुगलसराय व कर्मनाशा स्टेशन तक पहुचे । यहाँ से उत्तर प्रदेश सीमा की समाप्ति और विहार प्रदेश की शुरुआत होती है। मजदूर वर्ग और सतमडलीबिहार प्रान्त पिछडा हुआ हिस्सा होने के कारण आसपास के ये निवासीगण लूखे-सूखे, नीरस अल्पज्ञ एव रिक्त मक्ति मन वाले जान पड रहे थे। फिर भी मुनिमडली 'चरैवेति-चरैवेति" वेद के वाक्यानुसार खाद्य समस्या को गौण मानकर कदम आगे से आगे बढाते चले जा रहे थे । येनकेन प्रकारेण टालमिया नगर तक की मजिल तय हो ही गई। यहां कल-कारखानो की वजह से इधरउघर के आए हुए काफी दिगम्बर जैन परिवार बसे हुए है । उद्योग पति सेठ साहू शान्तिप्रसाद जी जैन ने गुरुदेव आदि मुनिवरो के पावन दर्शन किये। जैन-धर्म महात्म्य, अहिंसा एव मानव के कर्तव्य आदि विपयो पर अनेक जाहिर प्रवचन भी करवाए। वस्तुत जैन-जनेतर समाज काफी प्रभावित हुआ और जिसमे मजदूर वर्ग ने तो काफी संख्या में उपस्थित होकर गुरु महाराज के समक्ष मद्यमास एव नशैली वस्तु सेवन न करने का नियम स्वीकार किया। इस प्रकार उद्योगपति एव मजदूर वर्ग की ओर से अत्यधिक विनती होने पर कुछ दिनो तक और विराजे फिर आगे कदम बढाए। विहार-वासियो के लिये नवीनताविहारी जनता के लिए स्थानकवासी जैन मुनि नये-नये से जान पड रहे थे। जिस प्रकार, राम-लक्ष्मण वन में जाते समय जनता आखें फाड-फाड कर निहारती थी उसी प्रकार मार्ग मे जहाँतहाँ बस्तियां आती थी, वहां के निवासीगण कही दूर तो कही नजदीक इकट्ठे हो-होकर विस्फारित नेत्रो से देखा करते थे। "अरे । ये कौन हैं ? एक सी वेश-भूपा वाले, जिसके मुह पर कपड़ा लगा, हुआ है, कधे पर एक श्वेत गुच्छा, पैर नगे एव सौम्य आकृति जान पड रही है। क्या पता ये बोलते हैं कि-नही " इस प्रकार पारस्परिक वे जन वार्तालाप करते थे। कोई-कोई भावुक एव सुशिक्षित विहारी पास मे आकर करबद्ध होकर पूछ भी लेता था "आप कौन हैं ? आग की ख्याति, परिचय हम लोग जानना चाहते हैं । आगे आप की यह मडली किधर जा रही है।" "हम प्रभु पार्श्वनाथ और भगवान महावीर के शिष्य-श्रमण (भिक्षु) हैं । आगे हमारी यह
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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