SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ को पुन कानपुर पधारना पडा। चातुर्मासिक दिनो मे अच्छी धर्मोन्नति-प्रगति हुई । और सानन्द यह वर्षावास भी व्यतीत हुआ। चातुर्मासोपरान्त विचरण करते हुए मार्ग मे विभिन्न आचार-विचार वाली उस ग्राम्य जनता को एव स्व० प० नेहरू की जन्म भूमि इलाहवादीय जनता को उद्बोधन करते हुए 'काशी' (वाराणसी) पधारें । प्राप्त प्रमाणो के अनुमार यह निर्विवाद सत्य है कि-काशी नगर सदैव से जैनधर्म का केन्द्र रहा है। खास काशी के कमनीय प्रागण मे तेवीसवें तीर्थंकर प्रभु पार्श्व एव भदैनी घाट समीपस्थ सातवे तीर्थकर सुपार्श्वनाथ का जन्मकल्याण माना गया है। इसी प्रकार यहाँ से अटारह मील दूर चन्द्रपुरी मे आठवें तीर्य कर चन्द्रप्रभुजी का जन्म, ग्यारहवे श्री श्रेयास प्रभुजी का जन्म और भी अनेकानेक मुनिमनस्विया के पवित्र पादरजो से यह नगरी गौरवान्वित हो चुकी है । आप मुनिवरो का शुभागमन भी एक महत्त्व पूर्ण ही था। अवकाशानुसार सारनाथ, पार्श्वनाथ विद्याश्रम एव विश्व विद्यालय आदि-आदि ऐतिहासिक स्यानो का अवलोकन किया गया। चारो सप्रदाय के जैन बन्धुओ ने आपकी अध्यक्षता मे महावीर जयन्ति का विशाल आयोजन सम्पन्न किया। इसी शुभावसर पर झरिया श्री सघ का एक प्रतिनिधि मडल मुनिवरो की सेवा मे वगाल विहार प्रातो को पावन करने हेतु उपस्थित हुआ । मार्गीय कठिनता के विपय मे पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् स्वीकृति फरमाई। तदनुसार विहार प्रान्त की ओर प्रस्थान भी हो गया।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy