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________________ ५२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य प्रदेश माना गया है और इतिहान भी इस प्रदेश को "लाढ" प्रदेश के नाम से स्वीकार करता है । भ० महावीर की यह नाघना-स्थली थी। इसलिए इस प्रदेश के साथ घनिष्ट सम्बन्ध हो इसमे आश्चर्य ही क्या ? जिसका सवल और स्पष्ट प्रमाण भ० वर्धमान के नाम पर जनता द्वारा रखा हुआ—"वर्धमान नगर" है । इतिहासकारो का अनुमान भी यह बताता है कि यह प्रदेश वर्धमान नाम से सुविख्यात इमलिए हुआ कि-यहां भ० वर्धमान म्दामी ने घोरातिघोर तपाराधना सम्पन्न की थी। चीनी यात्री ह्वेनसाग का उल्लेखप्रसिद्ध चीनी यात्री 'हॅनमाग' ने भी अपनी भारत-यात्रा वर्णन मे ऐसा मकेत अवश्य किया है कि- "यह "लाट" देश तीर्थकर वर्धमान की तपोभूमि थी। जहाँ धन धान्य वैभव की विपुलता के कारण जन-जीवन सुखी था । जहाँ-तहाँ जैन धर्म का प्रभाव अधिक दृष्टि गोचर हो रहा था। इस कारण इम देग को भूमि अहिमा धर्म ने महक रही थी और हिंसामय प्रवृत्तियां वन्द सी जान पड रही थी।" ULL
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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