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________________ सन्त-सेना सेना के दो प्रकार सेना के दो प्रकार माने गये है-एक सेना वह है जो अहर्निश ग्राम-नगर-शहर एव देश की सीमा पर तैनात रहती है। समय-समय पर वाहरी शत्रु ओ के अयाचारो-आक्रमणो से देशीय-प्रान्तीय जनता को सावधान एव सचेत किया करती है। स्वयमेव सर्दी-गर्मी-क्ष घा-पिपासा आदि नानाविध कठि - नाइयो को झेल कर भी देश के जन-धन एव गौरव की रक्षा करती है । फलस्वरूप देशवासी मानव सुगमता-निर्भयता पूर्वक अपने अपने रीतिरिवाज, धर्म-कर्म एव आचार व्यवहार का पालन-पोषण करने मे सफल होते हैं। वाहरी दुश्मन स्वदेश मे न घुस आए, इम भावना-कामना को आगे रखकर आज हजारो लाखो भारतीय सैनिक देश मीमा के इस छोर मे उस छोर तक निडर प्रहरी के रूप मे खडे है। चरअचर सम्पत्ति की रक्षा करना, देश, समाज, सस्कृति एवं प्रत्येक देशवासी नागरिक के प्रति वफादारईमानदार रहना ही इम सेना के मौलिक कर्तव्य माने गये हैं सिद्धान्त मे कथित-"हयाणीय, गयाणीय, रहाणीय, पायत्ताणीय' इन चार प्रकार की सेना का समावेश भी उपरोक्त सेना मे हो हो जाता है। सत वनाम सैनिक दूसरे प्रकार के सैनिक वे है जो सम्यक् साधना के पवित्र पथ पर पर्यटन करते हुए भीतरी शत्रु ओ मे लोहा लेते हैं एव प्रत्येक नर नारी को आन्तरिक रिपुओ से सजग रहने का सकेत भी करते हैं। क्योकि भीतरी शत्रु भयकर अति भयकर माने गये हैं। एक वक्त स्व० नेहरू ने भी अपने मुख से कहा था कि-"हमें बाहरी शत्रु ओं से उतना भय नहीं, जितना कि भीतरी दुश्मनो से है ' बात विल्कुल ठीक है । वाहरी शत्रु, तो केवल धन-धरती-धाम अथवा जान पर धावा बोलते है, परन्तु भीतरी अरि तो रत्न त्रय धन के माथ-साथ अनेक भवो तक दुख कूप दुर्गति के मेहमान भी वना जाते हैं । वे शत्रु हैं-क्रोध मान-माया-लोभ-राग और द्वेप । इनको पडरिपु भी कहते है । मानव समाज जागरूक किंवा सुप्तावस्था मे हो, किन्तु ये पडरिपु इतने निष्ठुर है कि-एक क्षण का भी प्रमाद किये बिना अनवरतगत्या मानव के उन अतुलित अनुपम निधि का सत्यानाश किया करते हैं। अतएव इस प्रकार के अनिष्टकारी आक्रमणो की रोक थाम के लिये सत सेना एक अनोखा आदर्श भरा कार्य करती हुई, इस हानि से जनता को बचाने का पूर्णत प्रयत्न करती है यथा कोहो पोइ पणासेइ, माणो विणय नासणो । माया मित्ताणि नासेई, लोभो सन्व विणासणो । मुमुक्ष । "क्रोध प्रीति का, मान विनय का, माया मित्रता का और लोभ सर्व सद्गणो का नाशक एव घातक माना गया है।"
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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