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________________ २२४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ एकदा अन्तरडा ग्राम के ठाकुर सा० ने रामायण सम्बन्धित भित्तियो पर चित्र बनाने के लिए आपको बुलाया । तदनुसार रग-रोगन लगाकर चित्र अधिकाधिक चमकीले बनाये गये। पूरी तौर से रोगन सूख नही पाया था और विना कपडा ढके वे घर चले गये । वापिस आ करके देखा तो बहुत सी मक्खियाँ रोगन के साथ चिपक कर प्राणो की आहुतियां दे चुकी थी। बस, मन मे भारी ग्लानि उत्पन्न हुई । अन्तर्ह दय मे वैराग्य की गगा फूट पडी। विचारो की धारा में डूव गये हाय । मेरी थोडी असावधानी के कारण भारी अकाज हो गया । अव मुझे दया ही पालना है । खोज करते हुए आ० श्री दौलतराम जी म० की सेवा मे आये और उत्तमोत्तम भावो से जैन दीक्षा स्वीकार कर ली। ___ गुरु भगवत की पर्युपासना करते हुए आगमिक ठोस ज्ञान का सपादन किया। मबल एव सफल शासक मान करके सघ ने आप को आचार्य पद पर आसीन किया । आपकी उपस्थिति मे कोटा सप्रदाय मे मत्तावीस पडित एव कुल सावु-साध्वीयो की संख्या २७५ तक पहुंच चुकी थी इस प्रकार कोटा सप्रदाय के विस्तार मे आप का श्लाघनीय योगदान रहा। आचार्य श्री हुकमीचन्द जी म. सा० आप का जन्म जयपुर राज्य के अन्तर्गत 'टोडा' ग्राम मे ओसवाल गोत्र में हुआ था। पूर्व धार्मिक संस्कारो के प्रभाव से व यदा-कदा मुनि महासती के वैराग्योत्पादक उपदेशो के प्रभाव से आपका जीवन आत्म-चिंतन मे लीन रहा करता था। एकदा प० श्री लाल चद जी म० सा० का बून्दी मे शुभागमन हुआ और मुमुक्षु हुकमी चन्द जी का भी उन्ही दिनो घरेलू कार्य वशात् बून्दी मे आना हुआ था। वैराग्य वाहिनी वाणो का पान करके सवत् १८७६ मार्ग शीर्पमास के शुक्ल पक्ष मे विशाल जन समूह के समक्ष आ० श्री लालचन्द जी म० के पवित्र चरणो मे दीक्षित हुए और बलिष्ठ योद्धा की भाँति नव दीक्षित मुनि रत्न-प्रय की साधना मे जुड गये । वस्तुत उच्चतम आचार-विचार व्यवहार के प्रभाव से सयमी जीवन मवल बना। व्याख्यान शैली शब्दाडम्बर से रहित सीधी-सादी सरल एव पैराग्य से ओत-प्रोत भव्यो के मानस-स्थली को सीधी छने । आपके हस्ताक्षर अति सुन्दर आते थे। आज भी आप द्वारा लिखित शास्त्र निम्बाहेडा के पुस्तकालय की शोभा मे अभिवृद्धि कर रहे हैं । 'ज्ञानाय-दानाय-रक्षणाय' तदनुसार स्व-पर कल्याण की भावना को लेकर आपने मालव धरती को पावन किया। शामन प्रभावना मे आशातीन अभिवृद्धि हुई । साधिक सुप्तशक्तियो मे नई चेतना अगडाई लेने लगी, नये वातावरण का सर्जन हुआ। जहां-तहां दया धर्म का नारा गूजउठा और विखरी हुई सघ-शक्ति मे पुन एकता की प्रतिष्ठा हुई। पूज्य प्रवर के शुभागमन मे श्री सघो मे काफी धर्मोन्नति हुई । जन-जन का अन्तर्मानस पूज्य प्रवर के प्रति सश्रद्धा नत मस्तक हो उठा । चूंकि-पूज्य श्री का तपोमय जीवन था। निरतर २१ वर्ष तक वेलेवेले की तपाराधना, ओढने के लिए एक ही चद्दर का उपयोग, प्रतिदिन दो सी 'नमोत्युण' का स्मरण करना, जीवन पर्यंत सर्व प्रकार के मिष्ठान्नो का परित्याग और स्वय के अधिकार मे शिष्य नही वनाना आदि महान् प्रतिज्ञाओ के धनी पूज्यप्रवर का जीवन अन्य नर-नारियो के लिये प्रेरणादायक रहे, उसमे आश्चर्य ही क्या है ? उसी उच्च कोटि की साधना के कारण चित्तौडगढ मे आप के स्पर्श से एक कुप्टी रोगी के रोग का अन्त होना, रामपुरा मे आप की मौजूदगी मे एक वैरागिन बहिन के हाथो में पड़ी हथकडियो का टूटना और नाथ द्वारा के व्याख्यान समवशरण मे नभमार्ग से विचित्र ढग के
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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