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________________ चतुर्थ खण्ड धर्म, दर्शन एव संस्कृति हमारी आचार्य-परम्परा | २२५ रुपयो की बरसात आदि-२ चमत्कार पूज्य प्रवर के उच्चातिउच्चकोटि के सयम का सस्मरण करवा रहे है। अपनी प्रखर प्रतिभा, उत्कृष्ट चारित्र और असरकारक वाणी के कारण जनता के इतने प्रिय हो गये कि-भविष्य मे आप के आज्ञानुगामी सत-सती समूह को जनता "पूज्य श्री हुक्मचद जी म० सा० की सम्प्रदाय के" नाम से पुकारने लगी । इस प्रकार लगभग अडतीम वर्प पाच मास तक शुद्ध सयम का परिपालन कर चारित्र चूडामणि श्रमणश्रेष्ठ पूज्य श्री हुक्मीचन्द जी म० सा० का वैशाख शुक्ला ५ सवत् १९१७ मगलवार को जावद शहर मे समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ । तत्पश्चात् साधिक सर्व उत्तरदायित्व आप के गुरु भ्राता पूज्य श्री शिवलाल जी म० को सभालना जरूरी हुआ । जिनका परिचय इस प्रकार है। आचार्य श्री शिवलाल जी म. सा. आप की पावन जन्मस्थली मालवा प्रान्त मे धामनिया (नीमच) ग्राम था । सवत् १८६१ मे आपने दीक्षा अगीकार की थी । स्व० पूज्य श्री हुक्मचन्द जी म० की तरह ही आप भी शास्त्रमर्मज्ञ, -स्वाध्यायी व आचार-विचार मे महान निष्ठावान-श्रद्धावान ये। न्याय एव व्याकरण विपय के अच्छे ज्ञाता के साथ-साथ स्व-मत-पर-मत मीमासा मे भी आप कुशल कोविद माने जाते थे। आप यदा-कदा भक्ति भरे व जीवनस्पर्शी, उपदेशी कवित्त भजन-लावणियाँ भी रचा करते थे। जो सम्प्रति पूर्ण साधना भाव के कारण अप्रकाशित अवस्था मे ही रह गये हैं । आपके प्रवचन तात्विक विचारो से ओत-प्रोत जन साधारण की भाव-भापा मे ही हुआ करते थे और सरल भापा के माध्यम से ही आप अपने विचारो को जन-जन तक पहुँचाने मे सफल भी हुए हैं। जिज्ञासुओ के शकाओ का समाधान भी आप शास्त्रीय मान्यतानुसार अनोखे ढग से किया करते थे । निरन्तर छत्तीस वर्ष तक एकान्तर तपाराधना कर कर्म कीट को धोने मे प्रयत्नशील रहे थे। वे पारणे मे कभी-कभी दूध घी आदि विगयो का परित्याग भी किया करते थे। इस प्रकार काफी सयम का परिपालन कर व चतुर्विध सघ की खूब अभिवृद्धि कर स० १९३३ पौप शुक्ला ६ रविवार के दिन आप दिवगत हुए। कुलाचार्य के रूप मे भो आप विख्यात थे । पूज्य प्रवर श्री उदयसागर जी मा० पूज्य श्री शिवलाल जी म० सा० के दिवगत होने के पश्चात् संप्रदाय की वागडोर आपके कमनीय कर-कमलो मे शोभित हुई। आप का जन्म स्थान जोधपुर है । खिवेसरा गोत्रीय ओसवाल श्रेष्ठी श्री नथमलजी की धर्म पत्नी श्रीमतो जीवावाई की कुक्षी से स० १८७६ के पोप मास मे आप का जन्म हुआ। समयानुमार ज्ञानाभ्यास, कुछ अशो मे धघा-रोजगार भी सिखाया गया और साथ ही साथ लघु वय मे ही आप का सगपण भी कर दिया गया था। वस्तुत कुछ नैमित्तिक कारणो से और विकामोन्मुखी जीवन हो जाने के कारण विवाह योजना को वही ठण्डी करके सयमग्रहण करने का निश्चय कर लिया। दिनो दिन वैराग्य भाव-सरिता मे तल्लीन रहने लगे । येन-केन-प्रकारेण दीक्षा भावो की मद-मद महक उनके मात'पिता तक पहुंची। काफी विघ्न भी आये लेकिन आप अपने निश्चय पर सुदृढ रहे। काफी दिनों तक २६ तक शूद्ध
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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