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________________ चतुर्थ खण्ड धर्म दर्शन एव सस्कृति विश्वज्योति भगवान महावीर का त्रिपृष्ठभव | २०१ एक बार दिवस का अवसान समीप था। सन्ध्या की सुहावनी वेला थी । भगवान भास्करअस्ताचल की गोद मे पहुँच गया था। उस समय त्रिपृष्ठ के नकट्य मे कुछ सगीतज्ञ उपस्थित हये। उन्होने सगीत कला का परिचय दिया, सगीत की अत्यधिक सुमधुर झकार से वहाँ का स्थल झकृत हो उठा | त्रिपृप्ट वासुदेव ने शय्यापालको को आदेश दिया कि जब मुझे नीद आ जाय तव गायको को रोक देना, शय्यापालको ने त्रिपृष्ठ की आज्ञा शिरोधार्य की । कुछ समय के पश्चात् सम्राट निद्रा देवी की आराधना करने मे निमग्न हो गये । शय्यापालक सगीत की स्वरलहरी सुनने मे तल्लीन हो गये। सगीतज्ञो को उमने चिरमित नहीं किया। रात भर सगीत का कार्यक्रम चलता रहा। ऊषा की स्वर्णिम रश्मियाँ मुस्कराने वाली थी कि राजा जग उठा । सम्राट ने ज्यो ही सगीत का कार्यक्रम देखा तो शय्यापालको से पूछा-इन्हे विसर्जित क्यो नही किया ? निवेदन मे उन्होंने कहा-देव । सगीत का प्रभाव हमारे पर इतना पडा कि हम मुग्ध हो गये, सुनते-सुनते अत्यधिक अनुरक्त हो गये जिससे इनको नही रोका १८ । यह सुन त्रिपृष्ठ क्रोध की अग्नि में जल उठा, क्रोध मे वह भडक आया। अपने सेवको को वुलवाया और आदेश दिया कि-आज्ञा की अवज्ञा करने वाले एव सगीत के लोभी इस शय्यापालक के कानो मे गर्म शीशा उडेल दो। राजा की कठोरता पूर्ण आज्ञा से शय्यापालक के कर्ण-कुहुरो मे गर्मागर्म शीशा उडेला गया । असह्य वेदना से छटपटाते हुए उस के प्राण पखेरू उड गये १९ | सम्राट त्रिपृष्ठ ने सत्ता के मद मे मातङ्ग की तरह उन्मत्त होकर इस ऋ रकृत्य के कारण-निकाचित कर्मों का वन्ध वाधा | महारभ और महापरिग्रह के सिन्धु मे डूवा रहा और चौरामी लाख वर्ष पर्यन्त राज्य श्री का उपभोग करने मे तल्लीन हो गया | वहाँ से आयुपूर्ण होने पर सातवे तमस्तमा नरक के अप्रतिष्ठान नारकावास मे नैरयिक के रूप मे उत्पन्न हुआ २० । १८-(क) तेषु गायत्सु चोत्तस्थी, विष्णरुचे च ताल्पिकम् । त्वया विसृष्टा किं नामी सोप्यूचे गीतलोभत । -त्रिषष्टिशलाका० १०११११ १७ (ख)--महावीरचरिय प्र० ३, प० ६२ । १६-महावीर चरिय ३, ५० ६२ । २०-तिवढेण वासुदेवे चउरासोडवाससयमहस्साइ-सव्वाउय पालइत्ता अप्पइट्ठाणे नराए नेरइत्ता उववन्नो। -समवायाङ्ग ८४ समवाय SALA
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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