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________________ धर्म क्रान्ति के अग्रदूत तीर्थंकर महावीर ---श्री यशपाल जैन ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ महावीर ने समाज की इस दुरवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया । जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण रचनात्मक था । वह बडी लकीर खीचकर पास की लकीर को छोटा सिद्ध करने के पक्षपाती थे। उन्होंने किसी भी मान्यता का खण्डन नही किया, न किसी को तर्क द्वाग परास्त करने का प्रयत्न किया। उन्होंने जीवन के सही मूल्यो की प्रस्थापना की। युग-प्रवाह के विरुद्ध तैरना सुगम नही होता। भयकर हिंसा के वीच महावीर ने घोप किया-"अहिंसा परम धर्म है।" __ अन्ध विश्वासो को चुनौती तीर्थकर महावीर क्रातिकारी थे। क्रान्ति का अर्थ होता है-प्रचलित मान्यताओ, रूढियो, अन्धविश्वामो के विरुद्ध स्वर ऊँचा करना और नये मूल्य स्थापित करना। महावीर ने वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन में व्याप्त बुराइयो को चुनौती दी और उस मार्ग को प्रतिष्ठित किया, जिस पर चल कर मानव तथा समाज शुद्ध एव प्रवुद्ध बन सकता था। उन्होने सबसे पहला क्रान्तिकारी कदम स्वय के जीवन में उठाया । वह राजपुत्र थे। उनके चारो ओर समृद्धि और वैभव था। समाज में इन दोनो का वडा मान था । मनुष्य की ऊँचाई और निचाई इस वात से आकी जाती थी कि उसके पास कितना धन है और वह किम ओहदे पर है । महावीर ने राज्य त्यागा, धन त्यागा, क्योकि उनकी दृष्टि मे मानव का मानदण्ड ये वस्तुएं नही थी । महावीर का यह कार्य असामान्य था, क्योकि सासारिक प्रलोभनो को विरले ही छोड पाते हैं, विशेपकर युवावस्था मे ऐसा करना तो और भी कठिन होता है । महावीर उस समय लगभग तीस वर्ष के थे और यह वह वय थी, जवकि मनुष्य को भौतिक साधन रस प्रदान करते हैं । महावीर पर कोई भी वाहगे दवाव नही था । उन्होने स्वेच्छा से सुख प्रदायक माने जाने वाले प्रसाधनो को तिलाजलि दी और साधना के कठोर मार्ग पर चल पडे । उन्होने कोई भी वन्धन स्वीकार नही किया, यहां तक कि वम्यो तक का त्याग कर दिया। असाधारण आत्मिक बल वाल्यकाल से ही उनमे वडा साहस और आत्मविश्वास था । धैर्य और कप्ट-सहिष्णुता थी। क्रान्ति के लिये ये सब गुण अनिवार्य है। दुर्बल व्यक्ति दीर्घकालीन साधना के मार्ग पर चल नही सकता और जिसमे आत्म-विश्वास न हो वह समाज को वदल नहीं सकता। महावीर ने वारह वर्ष तक साधना की । सर्दी, गर्मी, वर्षा, धूप तथा समाज के अवाछनीय तत्वो के उपसर्ग उन्हे अपने मार्ग से विचलित न कर सके । मेरी निश्चित मान्यता है कि महावीर मे असाधारण आत्मिक बल, मानसिक दृढता रही होगी तभी वह अपनी साधना को अन्त तक निभा सके ।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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